मरुस्थलीकरण Desertification kya hai
मरुस्थलीकरण (Desertification)
किसी रेगिस्तान के आस-पास गैर-मारुस्थलीय मार्गों में मरुस्थल के विस्तार को मरुस्थलीकरण (desertification) कहा जाता है। राजस्थान के थार मरुस्थल के पूर्वी और उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में पड़ोसी राज्यों के कई भागों में इसकी समस्या विद्यमान है।
मरुस्थल की सीमाओं पर हवा की दिशा के लंबवत घने पत्तों वाले लंबे वृक्षों को लगाने तथा वहां जल को बेहतर उपलब्धि कराने से मस्स्थलीकरण को रोकने में अच्छी सफलता प्राप्त होती है।
कृषि मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के आधार पर योजना आयोग द्वारा 1985 में भारत की निम्नीकृत ( degraded) मृदाओ/भूमियों का वर्गीकरण तथा उनके लिए जिम्मेदार कारणों का उल्लेख किया गया। इस प्रकार की क्षतिग्रस्त भूमि मृदा क्षरण (निम्नीकरण) का कारण प्रदेश और स्थान में परिवर्तन के साथ बदलती है। कुछ क्षेत्रों में जहां इसका कारण जल अपरदन है। यहाँ कुछ अन्य क्षेत्रों में यह वायु अपरदन लवणीयता या फिर विषैले रसायनों इत्यादि के कारण से विस्तार हुआ है।
भारत के लगभग 2 मिलियन हेक्टेयर भू-भाग जहा अवनालिका अपरदन से प्रभावित है यहीं लगभग 1.66 मिलियन हेक्टेयर भू भाग पर जल जमाव और दलदल की समस्या है। इसी प्रकार स्थानान्तरी कृषि से प्रभावित क्षेत्र की मात्रा 3•51 मिलियन हेक्टेयर है। जहां देश के अधिसूचित वन प्रदेश के 14 मिलियन हेक्टेयर से अधिक में निम्नीकृत मृदा है वहीं 19 मिलियन हेक्टेयर से भी अधिक भू-भाग बिना झाड़ी के खाली पड़े हैं। इन निम्नीकृत भू-भागों का पुनर्जित करने के उद्देश्य से शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है।
जल और हवा से होने वाले अपरदन भारत में मृदा निम्नीकरण के सबसे प्रमुख कारण हैं। जल अपरदन की दीर्घ समय तक चलने वाली निर्बाध प्रक्रिया इसे अवनालिका (gully) अपरदन के काफी खतरनाक स्थिति तक पहुंचाता है। जल और वायु अपरदन एक साथ मिलकर परतीय (sheet) अपरदन की और भी खतरनाक स्थिति को उत्पन्न करते हैं। भूमि के ऊपर से वनस्पतिया के हटने से उन पर वायु क्रिया तीव्र होती है और वायु अपरदन की समस्या उत्पन्न होती है। भारत के जल एवं वायु अपादन कि जहा वायु अपरदन की समस्या मुख्यातह थार मरुस्थल में विद्यमान है वहीं जल द्वारा होने वाले मृदा अपरदन की समस्या हिमालय गंगा के मैदानी क्षेत्रा और प्रायद्वीपीय भारत तक विस्तृत है ।
गहन कृषि (Intersive agriculture) जो अपनी सफलता के लिए जल की भारी मात्रा रासायनिक उर्वरकों कीटनाशको एवं नाशी जीवमारकों पर निर्भर है, द्वारा भारत के कई हिस्सो में जल जमाव एवं लवणीयता को समस्याओं का उत्पन्न किया है। उचित अपवाह व्यवस्था का विकास किए बिना ही सिचाई क्षमता के विस्तार ने इन समस्याओं का और गम्भीर बना दिया है। भारत में निम्नीकृत भूमि की मात्रा कितनी है इसकी वास्तविक जानकारी का अभाव है। भारत के कृषि विभाग द्वारा 2015 में प्रकाशित भू-उपयोग आंकड़ों के अनुसार देश में कृषि कार्य होने योग्य बंजर भूमि (wasteland) के 13.9 मिलियन हेक्टेयर होने का अनुमान था ।
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