02/06/23

मानसून क्या है भारत में इसका प्रभाव

मानसून क्या है मानसून या पावस, मूलतः एवं अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिण-पश्चिम तट पर आने वाली हवाओं को कहते हैं जो भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि में भारी वर्षा करातीं हैं। ये ऐसी मौसमी पवन होती हैं, जो दक्षिणी एशिया क्षेत्र में जून से सितंबर तक, प्रायः चार माह सक्रिय रहती है। इस शब्द का प्रथम प्रयोग ब्रिटिश भारत में (वर्तमान भारत, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश) एवं पड़ोसी देशों के संदर्भ में किया गया था। ये बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से चलने वाली बड़ी मौसमी हवाओं के लिये प्रयोग हुआ था, जो दक्षिण-पश्चिम से चलकर इस क्षेत्र में भारी वर्षाएं लाती थीं।


1 हाइड्रोलोजी में मानसून का व्यापक अर्थ है- कोई भी ऐसी पवन जो किसी क्षेत्र में किसी ऋतु-विशेष में ही अधिकांश वर्षा कराती है।


2 यहां ये उल्लेखनीय है, कि मानसून हवाओं का अर्थ अधिकांश समय वर्षा कराने से नहीं लिया जाना चाहिये।


3 इस परिभाषा की दृष्टि से संसार के अन्य क्षेत्र, जैसे- उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, उप-सहारा अफ़्रीका, आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया को भी मानसून क्षेत्र की श्रेणी में रखा जा सकता है। ये शब्द हिन्दी व उर्दु के मौसम शब्द का अपभ्रंश है। मानसून पूरी तरह से हवाओं के बहाव पर निर्भर करता है। आम हवाएं जब अपनी दिशा बदल लेती हैं तब मानसून आता है।


जब ये ठंडे से गर्म क्षेत्रों की तरफ बहती हैं तो उनमें नमी की मात्र बढ़ जाती है जिसके कारण वर्षा होती है। अनिश्चित बारिशः मानसून की जानकारी और भारतीय किसान किसानों को बारिश के बारे में सही समय पर और सटीक जानकारी दिए जाने की जरूरत भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने अप्रैल के अपने मानसून संबंधी अनुमानों को इस हफ्ते अपडेट किया है।


मौसम पूर्वानुमान के लिए आईएमडी जिन मॉडलों पर भरोसा करता है, उनके विश्लेषण से इस बार अल नीनो का विकसित होना लगभग निश्चित लग रहा है। अल नीनो मध्य प्रशांत में ऊष्णन (वॉर्मिंग) की एक चक्रीय परिघटना है, जिसके चलते 10 वर्षों में से छह में पश्चिम, उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत के पश्चिमी हिस्से में बारिश में कमी आती है, खासकर जुलाई और अगस्त के बीच। हालांकि, अल नीनो की निश्चितता के बावजूद, आईएमडी ने ‘सामान्य’ मानसून (50 साल के दीर्घकालिक औसत 87 सेंटीमीटर के 96 फीसदी) के अपने पूर्वानुमान को बनाए रखना तय किया है। इस 96 फीसदी से नीचे के किसी भी आंकड़े को ‘सामान्य से कम’ की श्रेणी में रखा जाता है। मौसम विभाग ने अपने इस आकलन का आधार ‘इंडियन ओशन डाइपोल’ यानी आईओडी (पश्चिमी और पूर्वी हिंद महासागर के बीच तापमान का उतार-चढ़ाव) कहलाने वाली एक अन्य परिघटना को बनाया है, जो बारिश की परिस्थितियां विकसित होने में मदद करेगी और अल नीनो की वजह से बारिश में आनेवाली कमी की भरपाई करेगी।


यह गौर करना अहम है कि आईओडी को भरपूर बारिश से उस कदर नहीं जोड़ा जाता, जितना कि अल नीनो को कम बारिश से। सन् 1997 में, भारत में एक शक्तिशाली अल नीनो था, लेकिन एक सकारात्मक आईओडी की वजह से दो फीसदी अधिक बारिश हुई। हालांकि, उस साल के बाद से दोनों स्थितियां एक साथ सामने नहीं आईं हैं, और तब से यह पहली बार है कि दोनों कारकों के एक ही मानसून सीजन में घटित होने की उम्मीद है।


आखिरी बार भारत में जिन सालों में मानसूनी बारिश में सामान्य से 10 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी थी, वे 2014 और 2015 थे – ये दोनों ही अल नीनो वाले साल थे। आईएमडी का अपडेट यह भी रेखांकित करता है कि देश के वर्षा-आधारित कृषि क्षेत्रों में औसत के 92 फीसदी से 104 फीसदी के बीच बारिश होगी। तकनीकी तौर पर यह ‘सामान्य’ कहलाने लायक है, लेकिन भिन्नता भी बहुत ज्यादा है और इसका मतलब यह हो सकता है कि पहले कई-कई दिनों तक पानी ही न बरसे और उसके बाद लगातार भारी बारिश का दौर चले। यह क्षेत्र विशेष में वर्षा के आंकड़ों को सामान्य स्तर तक पहुंचाने में मददगार हो सकता है, लेकिन यह कृषि के लिए मददगार नहीं होगा


मॉडल जो भी कहें, हर मानसून की अपनी विशिष्टताएं होती हैं। स्थान और समय दोनों के आधार पर मानसून के वितरण को देखना बेहद अहम होगा। जुलाई और अगस्त में बारिश ज्यादा कम रहने से, खासकर मध्य भारत में, कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है। इस महीने के दौरान बारिश के अधिक सटीक आकलन आईएमडी के लंबी अवधि के पूर्वानुमानों के जरिये उपलब्ध हैं जो पाक्षिक आधार पर भावी तस्वीर पेश करते हैं, और ये पूर्वानुमान लगातार बदलते रह सकते हैं। मानसून के 4 जून तक केरल पहुंचने का अनुमान है, और चाहे यह इसी तारीख को आए या फिर थोड़ा जल्दी या देर से, इसका मुख्य मानसूनी महीनों के दौरान बारिश की मात्रा पर कोई ज्यादा असर नहीं पड़ता है।


साल, राज्यों और केंद्र को किसानों तक सही समय पर, सटीक सूचनाएं पहुंचाने के लिए दोगुना प्रयास करना होगा। इसके लिए उन्हें ऊपर से लेकर प्रखंड (ब्लॉक) स्तर तक के अपने सभी उपलब्ध सूचना माध्यमों का इस्तेमाल करना होगा ।

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