02/06/23

what is sengol ? सेंगोल क्या है ?




What is sengol in hindi | सेंगोल क्या है? क्यों बना हुआ है आजकल चर्चा का  विषय 
: : __ सेंगोल भारत का एक प्राचीन स्वर्ण राजदण्ड है। इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा है। सेंगोल जिसे हस्तान्तरित किया जाता है, उससे न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती है। सेंगोल एक राजदंड है, जिसका इस्तेमाल चोल साम्राज्य में नए उत्तराधिकारी को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए किया जाता था। चोल साम्राज्य में जब कोई राजा अपना नया उत्तराधिकारी घोषित करता था तो वह उस नए उत्तराधिकारी को प्रतीक के रूप में सेंगोल राजदंड सौंप देता था।


सेंगोल भारत का एक प्राचीन स्वर्ण राजदण्ड है। इसका इतिहास चोल साम्राज्य से जुड़ा हुआ है। सेंगोल जिसे हस्तान्तरित किया जाता है, उससे न्यायपूर्ण शासन की अपेक्षा की जाती है। राजा से अपेक्षा की जाती है,की वह इस राजदंड को धारण कर न्यायपूर्ण शाशन करेगा|

sengol meaning | सेंगोल का अर्थ
सेंगोल शब्द का निर्माण तमिल भाषा के शब्द ‘सेम्मई’ से हुआ है जिसका अर्थ है नीतिपरायणता,  धर्म, सच्चाई और निष्ठां है|


नेहरु का सेंगोल से सम्बन्ध
भारत के आख़िरी वायसरॉय माउंटबेटेन ने नेहरू से पूछा कि भारत की बागडोर ब्रिटिश से लेकर भारत को कैसे सौंपी जाएगी? नेहरू ने राजा जी यानि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के सामने सवाल दोहराया| राजा जी ने कहा कि सदियों पहले दक्षिण भारत की चेरा, चोला और पंड्या वंशों में सत्ता का हस्तांतरण जिस प्रकार किया जाता था वैसे ही अंग्रेज़ों से भारत को सत्ता सौंपी जानी चाहिए, राजा जी ने कहा कि चोल साम्राज्य में इस परंपरा का पालन किया जाता था.राजा जी का सुझाव मान लिया गया और उन्हें पूरी व्यवस्था करने की ज़िम्मेदारी दी गई| राजा जी पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी, भारत की स्वाधीनता का प्रतीक चिह्न बनवाना कोई सहज कार्य नहीं था, राजा जी थिरुवावादुथुरई अधीनम मठ के मठाधीश के पास पहुंचे मठाधीश ने वुम्मिदी बंगारू ज्वैलर्स को राजदंड बनाने का काम सौंपा|


एक रिपोर्ट के अनुसार एक पुरोहित ने पहले माउंटबेटेन को सेंगोल दिया और फिर वापस ले लिया इसके बाद इस पर गंगाजल छिड़का गया और पंडित नेहरू को सौंपा गया, इस समारोह का आयोजन 14 अगस्त की मध्य रात्रि से पहले हुआ और इसके बाद 15 अगस्त को भारत एक आज़ाद देश बना| ये भी कहा जाता है कि जब पंडित नेहरू के सेंगोल स्वीकार करने के अवसर पर एक विशेष गीत भी गाया था|


सेंगोल क्यों बना हुआ है आजकल चर्चा का विषय
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘सेंगोल’ (राजदंड) की प्रथा को फिर से शुरू करने की घोषणा की और कहा कि यह भारतीयों को अंग्रेजों से मिली शक्ति का प्रतीक है। अमित शाह ने कहा कि इस नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले पीएम नरेंद्र मोदी तमिलनाडु से सेंगोल की अगवानी करेंगे।


इसके बाद प्रधानमंत्री इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे। इसे सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा। गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि इस सेंगोल का बहुत महत्व है। उन्होंने आगे कहा, “इस पवित्र सेंगोल को एक संग्रहालय में रखना अनुचित है। सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उपयुक्त स्थान नहीं हो सकता है।”

सेंगोल का इतिहास
प्राचीन काल में भारत में ऐसा होता था कि जब राजा का राज्याभिषेक होता था, तो विधिपूर्वक राज्याभिषेक हो जाने के बाद राजा राजदण्ड लेकर राजसिंहासन पर बैठता था। राजसिंहासन पर बैठने के बाद वह कहता था कि अब मैं राजा बन गया हूँ | मुझे कोई दण्ड नहीं दे सकता। तो पुरानी विधि ऐसी थी कि उनके पास एक संन्यासी खड़ा रहता था, लँगोटी पहने हुए। उसके हाथ में एक छोटा, पतला सा पलाश का डण्डा ( राजदंड ) रहता था। वह उससे राजा पर तीन बार प्रहार करते हुए उसे कहता था कि ‘राजा ! यह तुझे भी दण्डित कर सकता है।


चोल काल के दौरान ऐसे ही राजदंड का प्रयोग सत्ता हस्तांतरण को दर्शाने के लिए किया जाता था। उस समय पुराना राजा नए राजा को इसे सौंपता था। राजदंड सौंपने के दौरान 7वीं शताब्दी के तमिल संत थिरुग्नाना संबंदर द्वारा रचित एक विशेष गीत का गायन भी किया जाता था।


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