23/06/23

टाइटैनिक जहाज कैसे डूबा? पूरी कहानी

टाइटैनिक जहाज अपने आप में अपना अलग ही पहचान स्थापित किया है जिसके बारे में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा आज हर व्यक्ति को हैं  चाहे इसका इसके साथ कोई संबंध हो या न हो लेकिन यह इतिहास की ऐसी घटना है जिसके विषय में अधिक प्रभाव पड़ता है इस घटना में मानवीय संघर्ष को दर्शाया है जिनकी प्रमाण इस दुर्घटना में जिंदा बचे लोगो ने बताया है। आइए जानते है इसके विषय में।

टाइटैनिक जहाज 


टाइटैनिक जहाज, विश्व इतिहास के सबसे प्रसिद्ध घटना में से एक है। यह ब्रिटिश वाइट स्टार लाइन कंपनी के लिए निर्मित हुआ था और अपने समय का सबसे बड़ा जहाज था। टाइटैनिक का निर्माण 1910 और 1912 के बीच हुआ था और यह समुद्री यात्रा के लिए डिज़ाइन किया गया था।


जहाज की लंबाई लगभग 269 मीटर थी और वजन लगभग 46,000 टन था। यह तीन इंजनों द्वारा चलाया जाता था और उसकी गति के लिए उसे तीन प्रवाही चक्के थे। टाइटैनिक विशाल स्टीम इंजन्स से संचालित होता था और सबसे तेज गति से यात्रा करता था।


10 अप्रैल 1912 को लिवरपूल से न्यूयॉर्क की ओर चली। लेकिन 14 अप्रैल 1912 को रात को उसका महज़ 4 दिन चलने के बाद जहाज एक बड़ी आपदा के शिकार हुआ। टाइटैनिक एटलांटिक महासागर में बर्फीले आइसबर्ग के साथ टकरा गई, जिससे यह डूब गई। इस दुर्घटना में कुल मिलाकर लगभग 1500 लोगों की मौत हो गई, जबकि कुछ लोगों ने खुदको इस घटना में बचाने में कामयाब रहे।


टाइटैनिक के डूबने की कहानी विश्व भर में मशहूर हुई और इसके बाद से इसे एक इतिहास का प्रतीक माना जाता है। यह घटना कई चरित्र, फिल्मों, किताबों और कार्यक्रमों में प्रवर्तित हुई है और टाइटैनिक के अंतिम यात्री और क्रू खगोलीय घटनाओं की खोज के लिए वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए जा रहे है। 


  अप्रैल 1912 के महीने की चमकदार रात, जब टाइटैनिक जहाज अपनी पहली यात्रा पर निकला। लोग अपनी सपनों और उम्मीदों के साथ उस पर आए थे। यह उनके लिए सपनों की जगह थी, जहां वे लक्ष्यों की ओर बढ़ रहे थे।

जब जहाज आगे बढ़ा, तो सबकी आँखों में उम्मीदों की चमक छा गई। लेकिन क्या कोई इस चमक के आगे आनेवाली आपदा की चेतावनी पहचान पाया? नहीं, न कोई उन विपदाओं का संकेत जिसे वे बाद में जानने वाले थे। आधी रात को जब सब अनजाने में नींद की गोद में थे, एक बड़ी आईसबर्ग के साथ टकरा गई। शुरुआत में लोगों को इसके घटना का एहसास नहीं हुआ, लेकिन जब पता चला कि जहाज डूबने की खतरे में है, लोग भागने और बचने की कोशिश करने लगे। उथल पुथल के बिच उम्मीद की किरण जगी जब एक वीर नाविक ने अपनी जान की परवाह किए बिना लोगो की मदद की। वे साथ मिलकर लोगों को जहाज के ऊपरी तल पर लाए और जीवन की एक बात साबित की, यानी सबकी ज़िंदगी कम से कम उस रात तक जारी रही। यह खतरनाक घटना दुनिया के ध्यान केंद्र में चली गई। टाइटैनिक जहाज की दुर्घटना से सीख लेते हुए समुद्री सुरक्षा के नए मापदंड स्थापित किए गए और इसने मानवता को यह सिखाया कि हमारी नाकामियों के बावजूद हमे आगे बढ़ना चाहिए, और धैर्य और सामर्थ्य के साथ हर मुश्किल से निपटना चाहिए।


टाइटैनिक जहाज की रोचक कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन अनिश्चितताओं से भरा होता है, और हमें हमेशा तैयार रहना चाहिए जो भी आगे आता है। यह हमें स्थायित्व, साहस और सामर्थ्य की आवश्यकता को समझाती है, जब हम अचानक संकट का सामना करते हैं।


टाइटैनिक का निमार्ण:

टाइटैनिक जहाज एक विशालकाय, आधुनिक और शानदार संरचना थी। यह जहाज 882.5 फीट (269.1 मीटर) लंबा, 92.5 फीट (28.2 मीटर) चौड़ा और 175 फीट (53 मीटर) ऊँचा था। यह तीन मुख्य धरोहरों (डेक) पर बँटा था।

टाइटैनिक का अधिकांश हिस्सा स्टील द्वारा बनाया गया था और उसकी बाहरी दीवारों में छोटे और बड़े धातु के जल तंतु लगे थे। इससे जहाज बहुत मजबूत बनता था।

टाइटैनिक में 9 दरवाजे हुए, जिनमें से 4 मुख्य थे जो एक तल से दूसरे तल तक फैले थे। ये दरवाजे जहाज के भागों को अलग करने और उनके बीच सुरक्षा प्रदान करने के लिए होते थे। जहाज के ढलान पर भी कई बंद दरवाजे थे जो आपात स्थितियों में उपयोगी साबित होते थे।

टाइटैनिक में 4 तल होते थे। सबसे नीचे का तल "डबल बॉतम" कहलाता था और यह जहाज की बेस्मेंट और इंजीन कमरों को संदर्भित करता था। इसके ऊपर "ओर्लोप डेक", फिर "प्रोमेनेड डेक" और सबसे ऊपर "आइसलैंड डेक" होता था। इन सतह पर यात्री यात्रा करते थे और जहाज की विभिन्न सुविधाओं का आनंद लेते थे।

टाइटैनिक में 3 इंजन रूम थे, जहां 29 बॉयलर रखे गए थे जो जहाज को ऊर्जा प्रदान करते थे। इन इंजन रूम में 159 इंजीनियर रहते थे जो इंजन की संचालन करते थे।

इसके अलावा, टाइटैनिक में बहुत सारी यात्रीओं और कर्मचारियों के लिए कमरे, रेस्टोरेंट, लाइब्रेरी, सौंदर्य सैलून, बार, आधुनिक सुविधाएँ और एक गोल्फ कोर्स भी था।


टाइटैनिक जहाज की विशाल संरचना और इंजीनियरिंग विज्ञान ने उसे एक आधुनिक महानतम बनाया। यह उदाहरण सामरिक प्रगति, इंजीनियरिंग कौशल, और इंसानी सोच की प्रतिष्ठा का है, जो आज भी लोगों को प्रभावित करता है।


टाइटैनिक जहाज में कई सुविधाएं थीं जो उसे एक शानदार और आरामदायक यात्रा बनाती थीं। यहां कुछ प्रमुख सुविधाएं हैं जो टाइटैनिक जहाज में मौजूद थीं:


1. यात्री कमरे: जहाज में विभिन्न श्रेणियों की यात्री कमरे थीं, जिनमें सुंदर और सुविधा सम्मिलित थी। उपन्यासकारों, चित्रकारों, समाज सेवकों और व्यापारियों की आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न आयामों और सुविधाओं वाली कमरे थीं।


2. रेस्टोरेंट: टाइटैनिक में कई रेस्टोरेंट थे जहां यात्री खाने पीने का आनंद ले सकते थे। यहां विभिन्न प्रकार के भोजन विकल्प उपलब्ध थे, जिसमें आपको उत्कृष्टता और विशेषता का अनुभव मिलता था।


3. लाइब्रेरी: जहाज में एक विशालकाय लाइब्रेरी भी थी, जहां यात्री किताबें पढ़ सकते थे। यह एक सुविधाजनक स्थान था जहां लोग विभिन्न विषयों पर पढ़ाई कर सकते थे और समय बिता सकते थे।


4. सौंदर्य सैलून: टाइटैनिक में एक ब्यूटी पार्लर था जहां महिलाएं सौंदर्य उत्पादों का आनंद ले सकती थीं। यहां विभिन्न सौंदर्य प्रसाधन देखने और खरीदने के विकल्प थे जो आपको आकर्षित करते थे।


5. बार: जहाज में एक बार भी था जहां यात्री मदिरा पदार्थों का आनंद ले सकते थे। यहां विभिन्न प्रकार के शराबी पेय पदार्थ उपलब्ध थे जिन्हें यात्री आपस में बातचीत करते हुए आराम से पी सकते थे।


6. गोल्फ कोर्स: टाइटैनिक में एक छोटा सा गोल्फ कोर्स भी था जहां यात्री गोल्फ खेल सकते थे। यह उन लोगों के लिए आकर्षक स्थान था जो गोल्फ के प्रेमी थे और खेल का आनंद लेना चाहते थे।


ये कुछ मात्र हैं टाइटैनिक जहाज में मौजूद सुविधाएं। इन सुविधाओं के साथ, यह जहाज यात्रियों को विश्राम, मनोरंजन और आनंद का एक वातावरण प्रदान करता था।


टाइटैनिक को बनाने की शुरुवात: 

टाइटैनिक जहाज का निर्माण 1909 में हुआ था और वह 1912 में अपनी प्रथम यात्रा के लिए रवाना हुआ था। जहाज का निर्माण ग्रेट ब्रिटेन के बेलफास्ट शहर में हुआ था, जहां उसे हारलैंड एंड वोल्फ शिप बिल्डिंग कंपनी द्वारा बनाया गया था।

टाइटैनिक जहाज की प्रथम यात्रा 10 अप्रैल 1912 को शेरब्रुक, आयरलैंड से न्यूयॉर्क, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए हुई। इसकी यात्रा के दौरान 14 अप्रैल 1912 को रात्रि में यह बर्फानी तटों के पास से गुजर रहा था, जब उसने एक बड़ी आईसबर्ग से टकराकर टूट गया। इस दुर्घटना के पश्चात जहाज डूबने लगा और दूसरे दिन, 15 अप्रैल को पूरी तरह से डूब गया। टाइटैनिक की डूबने की स्थिति के बारे में नई जानकारी नहीं है, लेकिन अनुमान लगाया जाता है कि वह लगभग 12,500 फीट (3,800 मीटर) की गहराई में समुद्र के नीचे गया था। यह उपग्रहों और जांचों द्वारा पुष्टि की गई है जो टाइटैनिक के विलय क्षेत्र को अन्वेषण करने के लिए किए गए हैं।

टाइटैनिक जहाज की यात्रा की आखिरी स्थल गंभीरता से जानी जाती है और यह एक विश्वविख्यात और आपत्तिजनक दुर्घटना बन गई है।

टाइटैनिक जहाज के साथ कई रोचक तथ्य जुड़े हुए हैं

यहां एक और रोचक तथ्य है:  टाइटैनिक जहाज के जीवित रहे यात्री और क्रू सदस्यों में से एक व्यक्ति थे जो अपने जन्मदिन पर जहाज के इतिहास की शुरुआत कर रहा था। इस शख्स का नाम मिल्ड्रेड नैशमिथ था, जो 15 अप्रैल, 1912 को 24 साल के हो रहे थे। उन्होंने टाइटैनिक की यात्रा पर जाने का फैसला किया था और इस रोमांचक और अनभिज्ञ यात्रा के दौरान उनका जन्मदिन मनाया जा रहा था।


जब जहाज डूबने की घटना घटी, तो मिल्ड्रेड नैशमिथ ने उस बड़े संकट के बावजूद भी अद्भुत ताकत और साहस दिखाए। वे उन अनुकरणीय लोगों में से एक थे जो निकलने के दौरान जिंदा रहे और उन्हें बचाने में मदद की।


इस रोचक तथ्य से हमें यह सिखाने का अवसर मिलता है कि जिंदगी अक्सर हमारे अनिश्चित और अप्रत्याशित क्षणों में अपने असली रंग दिखाती है। मिल्ड्रेड नैशमिथ जैसे अद्भुत व्यक्तित्व के माध्यम से हमें यह याद दिलाता है कि हमारी प्रतिभा, साहस और संघर्ष के बल पर हम विपदाओं से निपट सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं।


टाइटैनिक जहाज विज्ञान के कई पहलुओं से जुड़ा हुआ था। यहां कुछ वैज्ञानिक तथ्य हैं जो टाइटैनिक जहाज के संबंध में थे:


1. Control system: टाइटैनिक जहाज को एक विस्तृत नियंत्रण प्रणाली से युक्त किया गया था। यह नियंत्रण प्रणाली इंजीन रूम, पंजर और रेडियो के माध्यम से जहाज की गतिशीलता को नियंत्रित करती थी।


2. Sequrity system: टाइटैनिक जहाज में संरक्षण तंत्र भी स्थापित था। इसमें विभिन्न कमरों में दीवारों के पीछे स्थित बंद दरवाजे और ताले थे जो जहाज के विभाजन को मजबूती प्रदान करते थे। इससे जहाज डूबने पर भी कुछ समय तक बना रहा और लोगों को अधिक समय तक सुरक्षित रखा।


3. इंजीनियरिंग और जहाज की ढलान: टाइटैनिक जहाज की ढलान का डिज़ाइन इंजीनियरिंग ने किया था। जहाज की ढलान उसे ज्यादा संतुलित और स्थिर बनाने में मदद करती थी। यह ढलान जहाज को अधिक संचालनीय बनाती थी और समुद्री लहरो के बल को संतुलित करती थी।


4. आईसबर्ग और सुरक्षा: टाइटैनिक जहाज ने आईसबर्ग से टकराव से बचने के लिए कई सुरक्षा उपाय अपनाए थे। जहाज के कप्तान ने ध्यान दिया था कि जहाज इस प्रकार के संघर्ष को सह सके। तथापि, यह सुरक्षा उपाय आईसबर्ग के आकार और जहाज की ढलान के सामर्थ्य के सामर्थ्य पर निर्भर थे।


इन वैज्ञानिक तथ्यों ने टाइटैनिक जहाज के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इसकी सुरक्षा और क्षमता को सुनिश्चित किया।



टाइटैनिक जहाज की कुछ कमियां भी थीं, जो उसकी सुरक्षा को प्रभावित कर सकती थीं। यहां कुछ मुख्य कमियां हैं:


1. जहाज में ब्रेक सिस्टम: टाइटैनिक के समय में नौका अवरोधक की व्यापकता में कमी थी। इसके कारण, जब जहाज बर्फानी तटों के पास से गुजर रहा था, तो वह बर्फ से टकराकर टूट गया। इसके परिणामस्वरूप, जहाज की बहुत बड़ी हिस्से तेजी से डूब गए।


2.sound defence system: टाइटैनिक में आवाज अवरोधक की कमी थी, जिसके कारण जब जहाज आवाज की चेतावनी के बाद बर्फानी तटों के पास से गुजर रहा था, तो इसकी चेतावनी बहुत देर तक पहुंचने में समय लगा। इसके कारण, जहाज के अधिकांश यात्री और कर्मचारी बचने के लिए पर्याप्त समय नहीं पा सके।


3. जहाज के निरीक्षण बिंदुओं की कमी: टाइटैनिक के पास काम करने के लिए पर्याप्त संख्या में निरीक्षण बिंदु नहीं थे। जिसके कारण, जहाज के कैप्टन और कर्मचारी बर्फानी तटों के पास के जोखिमों को पहचानने और समय पर चेतावनी देने में कमजोर थे।


4. बचाव के जहाज: टाइटैनिक में पर्याप्त संख्या में जहाज बचाव के उपकरण नहीं थे। जिसके कारण, जहाज डूबने के बाद भी यात्रीओं को बचाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। यह अवस्था जहाज की सुरक्षा को कमजोर कर रही थी।


ये कुछ कमियां थीं जो टाइटैनिक की सुरक्षा में कमजोरी पैदा कर सकती थीं। इन कमियों के चलते ही टाइटैनिक को एक ऐतिहासिक और दुखद दुर्घटना का शिकार होना पड़ा।



टाइटेनिक की मलबे की खोज 

टाइटैनिक के मलबे को 1985 में खोजा गया। इससे पहले वह लगभग 73 साल तक समुद्री गहराई में छिपा रहा था। 1985 में टाइटैनिक के खोज-तलाश अभियान का आयोजन किया गया, जिसमें अमेरिकी और फ्रांसीसी दलों ने हिस्सा लिया। इस अभियान में टाइटैनिक को समुद्री गहराई से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया।


विज्ञान और तकनीकी प्रगति के माध्यम से, टाइटैनिक की सटीक स्थान पता लगाने के लिए सोनार, उल्लेखनीय समुद्री ड्रोन, उपग्रह छायांकन, और अन्य तकनीकों का उपयोग किया गया। 1985 में जब मालबे को खोजा गया, तो टाइटैनिक की खंडहरों को पहली बार दुनिया के सामने प्रकट किया गया।


यह खोज-तलाश अभियान टाइटैनिक के इतिहास को बदल दिया और इसे एक महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध घटना बना दिया। इसके बाद से, टाइटैनिक के खंडहरों को और इसकी कहानी को अधिक समझा जा सका है।


टाइटैनिक के मालबे के अभियान के द्वारा अब तक कई महत्वपूर्ण खोज और खोज-तलाश की प्रयासों में सफलता हासिल हुई है। इसके बावजूद, कुछ बातें अभी भी बाकी हैं और जारी खोज कार्यों के आधार पर विश्लेषण और अध्ययन जारी है।


कुछ महत्वपूर्ण बाकी कार्यों में शामिल हैं:


1. बाकी मलबे की पहचान: अभी भी बाकी है कि टाइटैनिक के कुछ भाग खोजे जाएं जो अभी तक पहचान नहीं किए गए हैं। यह मलबे टाइटैनिक की पूरी तस्वीर को पूरा कर सकते हैं और उसकी समझ में और अधिक मदद कर सकते हैं।


2. मलबे के वैज्ञानिक अध्ययन: अभियान जारी है जिसके तहत वैज्ञानिकों और अनुसंधानकर्ताओं द्वारा टाइटैनिक के मलबे के अध्ययन किए जा रहे 

है। 

लेबल:

21/06/23

Work from home earning money jobs

 क्या आप 1 स्टूडेंट, बेरोजगार, जॉब की तलास करने वाले हैं या आप 1 हाउस वाइफ हो और आप घर बैठे ही कुछ काम करना चाहते हैं जिससे कि आपको कोई आमदनी हो तो आप घर बैठे हैं निम्न में से कोई एक काम करके आप घर बैठे ही कुछ पैसे कमा सकते हैं इसके लिए आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है इसके लिए आपको बस बस एक मोबाइल और उसमें इंटरनेट होना चाहिए इसके माध्यम से आप घर बैठे ही महीने के 30 से 40,000 रुपए तक कमा सकते हैं इसके विषय में अधिक जानने के लिए घर से काम करने के आइडियाज हैं जो आपको मदद कर सकते हैं:


Work from home 


1. वेब डिजाइन और वेब डेवलपमेंट: अगर आपके पास कंप्यूटर और डिजाइनिंग कौशल हैं, तो आप वेबसाइट डिजाइन और वेबसाइट डेवलपमेंट कार्य कर सकती हैं। आप यह काम घर से कर सकती हैं और इंटरनेट पर अपनी सेवाएं प्रदान कर सकती हैं।


2. फ्रीलांसिंग: यदि आपके पास लेखन, ट्रांसलेशन, ब्लॉगिंग, फोटोग्राफी या किसी अन्य कौशल का ज्ञान है, तो आप फ्रीलांस काम कर सकती हैं। आप अपनी आवश्यकतानुसार काम का चयन कर सकती हैं और क्लाइंटों के साथ ऑनलाइन संपर्क में रहकर काम कर सकती हैं।


3. ऑनलाइन ट्यूटरिंग: यदि आपके पास किसी विषय में अच्छा ज्ञान है, तो आप ऑनलाइन ट्यूटरिंग करके अपने ज्ञान को बेच सकती हैं। इंटरनेट पर बहुत सारी ट्यूटरिंग प्लेटफॉर्म्स हैं जिनके माध्यम से आप छात्रों के साथ ऑनलाइन इंटरेक्शन में रहकर पढ़ाई कर सकती हैं।


4. ब्लॉग लिखना: यदि आपके पास लिखने की कला है और आपके पास एक विषय में विशेषज्ञता है, तो आप ब्लॉग लिखकर पैसे कमा सकती हैं। आप अपने ब्लॉग पर विज्ञापन दिखाकर या स्पौंसर्ड पोस्ट लिखकर आय बना सकती हैं।


5. सोशल मीडिया मैनेजमेंट: यदि आप सोशल मीडिया के प्रबंधन में माहिर हैं, तो आप ब्रांड्स या व्यक्तिगत संगठनों के लिए सोशल मीडिया प्रबंधक के रूप में काम कर सकती हैं। आप उनकी सोशल मीडिया पेज्स को बना सकती हैं, पोस्ट शेड्यूल कर सकती हैं और आपत्तियों का समाधान कर सकती हैं।


6. फूड डिलीवरी: आप खाना बनाने में माहिर हैं तो आप फूड डिलीवरी सेवा कंपनी में काम कर सकती हैं। आपको घर से खाना बनाना होगा और उसे ग्राहकों तक पहुंचाना होगा।




7. फ्रीलांस फोटोग्राफी: यदि आपके पास फोटोग्राफी कौशल हैं, तो आप फ्रीलांस फोटोग्राफर के रूप में काम कर सकती हैं। आप घर से फोटो संपादन और ग्राफिक डिजाइनिंग कार्य भी कर सकती हैं।


8. ऑनलाइन बिक्री या एफिलिएट मार्केटिंग: आप अपने खुद के ऑनलाइन दुकान खोलकर या एफिलिएट मार्केटिंग करके पैसे कमा सकती हैं। आप उत्पादों की बिक्री के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का उपयोग कर सकती हैं या अन्य कंपनियों के उत्पादों का प्रचार कर सकती हैं और उससे कमीशन प्राप्त कर सकती हैं।


9. ग्राहक सहायता: आप गृहिणी के तौर पर अपने घर से ग्राहक सहायता सेवाओं को प्रदान कर सकती हैं। यह ईमेल, चैट या फोन के माध्यम से हो सकता है। आपको ग्राहकों की समस्याओं को हल करने में सहायता करनी होगी और उनकी सहायता के लिए उपयुक्त जवाब देने होंगे।


10. वर्चुअल असिस्टेंट: यदि आपके पास सामान कार्यों का ज्ञान है, तो आप वर्चुअल असिस्टेंट के रूप में काम कर सकती हैं। यह काम ईमेल प्रबंधन, सामग्री लेखन, संगठनात्मक कार्य और अन्य संचालनिक कार्यों को शामिल कर सकता है।


ये थे कुछ और घर से काम करने के आइडियाज जो आपके लिए उपयोगी हो सकते हैं। आप अपनी रुचियों, कौशल और आपके लिए सही माध्यम का चयन करें जो आपको अधिक संतुष्टि और समय की व्यवस्था करने में मदद करेगा।

ये थे कुछ घर से काम करने के आइडियाज है। आप अपनी रुचियों, कौशल और उपलब्ध समय के अनुसार इनमें से कोई भी काम चुन सकते हैं। ध्यान दें कि आपको आपके क्षेत्र के कानूनों और नियमों का पालन करना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार काम का चयन करें।


यदि आप अफ़िलिएट मार्केटिंग के बारे में पूरा लेख हिंदी में पढ़ना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए लेख को देखें:


अफ़िलिएट मार्केटिंग: पूरी जानकारी और स्टेप-बाय-स्टेप गाइड


आजकल इंटरनेट एक महत्वपूर्ण साधन बन चुका है और इसे उपयोग करके आप पैसे कमा सकते हैं। अफ़िलिएट मार्केटिंग एक ऐसा तकनीक है जिसमें आप अन्य कंपनियों के उत्पादों या सेवाओं का प्रचार करके कमीशन कमा सकते हैं। यह आपको घर बैठे काम करने का अवसर देता है और आपको आपकी पसंद के उत्पादों का प्रचार करने की सुविधा प्रदान करता है।


अफ़िलिएट मार्केटिंग कैसे काम करता है?


1. रजिस्ट्रेशन: सबसे पहले, आपको अफ़िलिएट मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म पर रजिस्टर करना होगा। कुछ प्रमुख अफ़िलिएट मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म्स हैं जैसे की Amazon Associates, Flipkart Affiliate, ClickBank, CJ Affiliate, आदि।


2. उत्पाद चयन: जब आप प्लेटफ़ॉर्म पर रजिस्टर हो जाते हैं, तो आपको उनके उत्पाद का चयन करना होगा जिन्हें आप प्रचार करना चाहते हैं। आपको उत्पादों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलेगी, जैसे कि कीमत, विशेषताएं, इमेजेज, आदि।


3. अफ़िलिएट लिंक प्राप्त करें: जब आप उत्पाद का चयन कर लेते हैं, तो आपको अफ़िलिएट लिंक प्राप्त होगा। यह एक विशेष URL होता है जो आपके द्वारा चयनित उत्पाद को ट्रैक करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसके माध्यम से अगर आपके द्वारा भेजे गए लिंक के माध्यम से अगर कोई व्यक्ति कोई सामान खरीदना है तो उसका कुछ परसेंट आपको कमीशन के रूप में दिया जाता है।


4. प्रचार करें: अब आपको उत्पाद को प्रचार करना होगा। आप अपने ब्लॉग, वेबसाइट, सोशल मीडिया पोस्ट, यूट्यूब वीडियो, आदि के माध्यम से अपने अफ़िलिएट लिंक को साझा कर सकते हैं। जब कोई व्यक्ति आपके द्वारा साझा किए गए लिंक पर क्लिक करके उत्पाद खरीदता है, तो आपको कमीशन मिलेगा।


5. ट्रैकिंग और प्रदर्शन रिपोर्टिंग: अफ़िलिएट मार्केटिंग प्लेटफ़ॉर्म पर आपको अपने ट्रैकिंग लिंक के माध्यम से उत्पादों की प्रदर्शन रिपोर्ट और कमीशन की जानकारी मिलेगी। इसके माध्यम से आप अपनी प्रदर्शन को मॉनिटर कर सकते हैं और अपने कमीशन को ट्रैक कर सकते हैं।


अफ़िलिएट मार्केटिंग के फ़ायदे:


कम निवेश: अफ़िलिएट मार्केटिंग में काम करने के लिए आपको कम निवेश की आवश्यकता होती है। आप एक इंटरनेट कनेक्शन, कंप्यूटर या स्मार्टफोन के साथ घर से काम कर सकते हैं। इसके अलावा आपको और किसी प्रकार की अन्य खर्च करने की आवश्यकता नहीं है।


समय संयोजन: अफ़िलिएट मार्केटिंग आपको समय की आपूर्ति करता है। आप अपनी खुद की समय अनुसूची तय कर सकते हैं और घर के कामों के साथ इसे समायोजित कर सकते हैं। इसके माध्यम से आप अपने किसी और काम को करते हुए अपने खाली समय में इस काम को आप कभी भी कर सकते हैं।


बड़े आय संभावनाएं: जैसे ही आपकी प्रचार और प्रमोशन कौशल सुधारती हैं, आपकी कमीशन कमा सकती हैं। अच्छे प्रदर्शन के साथ, आप बड़ी आय कमा सकते हैं और अपने काम को स्केल कर सकते हैं। इसमें आप जितना अधिक काम करेंगे उसके हिसाब से आपको अधिक आय अर्जित करने का मौका मिलेगा यह पूर्णता आपके कार्य के ऊपर निर्भर करता है।


अफ़िलिएट मार्केटिंग से पैसे कमाने के लिए आपको मेहनत, समय और समर्पण की आवश्यकता होती है। आपको अपने प्रमोशनल कौशल को सुधारने के लिए नवीनतम ट्रेंड और डिजिटल मार्केटिंग उपायों के बारे में अपडेट रहना चाहिए। इसके साथ ही, नीचे दिए गए तरीकों का उपयोग करके आप अपने अफ़िलिएट मार्केटिंग योग्यता को बढ़ा सकते हैं:


कंटेंट मार्केटिंग: अपने ब्लॉग पोस्ट, आर्टिकल, या सामग्री के माध्यम से अपने उत्पादों का प्रचार करें। एकदिवसीय, मासिक , और वीकली लेखन योजना तैयार करें और नवीनतम और मूल्यवान सामग्री प्रदान करें।


सोशल मीडिया प्रचार: अपने अफ़िलिएट लिंक को विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर साझा करें। इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, और लिंक्डइन जैसे सामाजिक माध्यमों का उपयोग करें।


ईमेल मार्केटिंग: अपने ईमेल सूची के सदस्यों को नवीनतम ऑफ़र्स, सेल्स, और डील्स के बारे में जागरूक करें। उन्हें अपने अफ़िलिएट लिंक के माध्यम से उत्पादों को खरीदने के लिए प्रेरित करें।


ब्लॉगिंग: एक ब्लॉग शुरू करें और अपने उत्पादों और सेवाओं के बारे में विस्तृत समीक्षा, ट्यूटोरियल, और गाइड प्रदान करें। उपयोगी सामग्री प्रदान करके आप उपयोगकर्ताओं के विश्वास और आपके अफ़िलिएट लिंक क्लिकों की बढ़ावा दे सकते हैं।


पैड अफ़िलिएट मार्केटिंग: आप यूट्यूब वीडियोज़ बना सकते हैं और अपने अफ़िलिएट लिंक को वीडियो के विवरण में साझा कर सकते हैं। इसके अलावा, पॉडकास्ट बनाना भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है।


इस तरह से, आप अपने अफ़िलिएट मार्केटिंग कार्यक्रम को बढ़ा सकते हैं और उच्चतम संभावित कमीशन कमा सकते हैं। धीरे-धीरे, आप अपने कौशल को सुधारकर और अधिक अनुभव प्राप्त करके अफ़िलिएट मार्केटिंग से लंबे समय तक उच्च कमाई प्राप्त कर सकते हैं।


अफ़िलिएट मार्केटिंग कई तरीकों में किया जा सकता है, लेकिन एक सरल और प्रभावी तरीका है लिंक शेयरिंग का उपयोग करना। लिंक शेयरिंग के माध्यम से आप एक वेबसाइट, ब्लॉग, सोशल मीडिया पोस्ट, ईमेल, यूट्यूब वीडियो, या अन्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर अपने अफ़िलिएट लिंक को साझा कर सकते हैं। जब कोई उपयोगकर्ता आपके द्वारा साझा की गई लिंक पर क्लिक करके उत्पाद खरीदता है, तो आपको कमीशन मिलता है।


लिंक शेयरिंग के लिए आप निम्नलिखित कदमों का पालन कर सकते हैं:


1. एफ़िलिएट प्रोग्राम चुनें: सबसे पहले, आपको अफ़िलिएट प्रोग्राम का चयन करना होगा। आप ऐसे प्रोग्राम का चयन करें जो आपके इंटरेस्ट के साथ मेल खाता हो और उच्च कमीशन प्रदान करता हो।


2. अफ़िलिएट लिंक प्राप्त करें: जब आप अफ़िलिएट प्रोग्राम में साइन अप करते हैं, तो आपको एक अफ़िलिएट लिंक प्राप्त होगा। यह एक विशेष URL होता है जिसे आपके अफ़िलिएट कोड या आईडी के साथ संपन्न किया जाता है।


3. उत्पादों के प्रचार के लिए प्लेटफ़ॉर्म चुनें: अब आपको उत्पादों के प्रचार के लिए एक प्लेटफ़ॉर्म का चयन करना होगा। आप अपने अफ़िलिएट लिंक को अपने ब्लॉग, वेबसाइट, सोशल मीडिया पोस्ट, या ईमेल में साझा कर सकते हैं।


4. योग्य टारगेट एडियंस चुनें: आपको अपने उत्पादों के लिए योग्य टारगेट एडियंस का चयन करना होगा। आपको अपने लक्षित ग्राहकों के आवश्यकताओं और इंटरेस्ट के आधार पर निर्धारित करना होगा।


5. बाजारिक कैंपेन चलाएं: अपने अफ़िलिएट लिंक को उपयोग करके विभिन्न बाजारिक कैंपेन चलाएं। आप विशेष ऑफ़र्स, छूट, और डील्स प्रदान कर सकते हैं जो आपके लक्षित एडियंस को आकर्षित करेंगे।


याद रखें कि अफ़िलिएट मार्केटिंग में सफल होने के लिए आपको मेहनत, धैर्य, और संयम की आवश्यकता होती है। आपको उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों को प्रचार करने की आवश्यकता होती है और उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मार्केटिंग संचार कौशल का उपयोग करना होगा। 


आपको हमारा जानकारी कैसा लगा और आपको इससे कितनी जानकारी प्राप्त हुई जो आपके लिए लाभ कारक हो तो हमें कमेंट में जरूर बताएं और अगर आपके तरफ से कोई सुझाव देना हो यह आपका कोई प्रश्न हो तो हमें अपना बहुमूल्य फीडबैक अवश्य दें ।

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17/06/23

धरती पर डायनोसोर का इतिहास

हमारी धरती अपने आप में एक अनोखा रहस्य है जिसको समझ पाना संभव नहीं है। जिस प्रकार वर्तमान में हम मानव सभ्यता का युग है ठीक उसी प्रकार से मानव सभ्यता के पूर्व एक युग था जिसे डायनोसोर के युग के रुप में जाना जाता है। आइए जानते है इसका पूरा इतिहास।

धरती पर डायनोसोर का इतिहास 


धरती पर डायनोसोर का इतिहास

डायनोसॉर (Dinosaur) धरती पर कई लाख वर्षों से पहले मौजूद थे। डायनोसोर एक विशालकाय प्राणी थे जो एक समय में पूरे धरती पर पाए जाते थे। हालांकि, वर्तमान ज्ञान के अनुसार, डायनोसोर की प्राचीन इतिहास धारण करने में वैज्ञानिकों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ा है।


डायनोसॉर  की शुरुआत करीब 230 लाख वर्ष पहले, पेलियोजेनिक युग में हुई थी। इस समय पृथ्वी पर पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की जीव जंतुओं की प्रजातियां विकसित हो रही थीं।  डायनोसोर धरती पर सबसे विकसित जीवजंतु माने जाते हैं। इसके बाद के समय में यहां बड़ी संख्या में  प्रजातियां मौजूद थीं और उनके विभिन्न प्रकार के जीवन काल का पता चला है।


डायनोसॉर् विभिन्न प्रकार के थे, जिनमें अलग-अलग आकार, आकृति और विशेषताएं थीं। उदाहरण के लिए, ब्रैकीओसॉरस एक छोटा और बड़े दांतवाला डायनोसॉर था, जबकि तिरानोसॉरस रेक्स एक बड़ा, शक्तिशाली और भयानक डायनोसॉर था।


डायनोसॉर् जल, स्थल और हवाई रास्तों के द्वारा अलग-अलग दूर स्थनों में फैले हुए थे। वे गायब होने से पहले धरती पर अपनी प्रजाति के लगभग सभी क्षेत्रों में पाए जाते थे।

डायनोसॉर्सों की प्रमुख प्रजातियों में ट्राइसेरटॉप्स, स्टेगोसॉरस, अल्लोसॉरस, वेलोसिरैप्टर और ब्रोंटोसॉरस शामिल थे। इन प्रजातियों की खोज वैज्ञानिकों द्वारा कई वर्षों तक की गई है और यह डायनोसॉर् के जीवन काल और बाहरी आकृति की जानकारी प्रदान करती है।


डायनोसॉर् की अस्तित्व की अवधि के बारे में वैज्ञानिकों की आपस में मतभेद रहा है। माना जाता है कि वे 650000 वर्ष पहले यानी मेजोजोइक युग के समाप्त हो गए, जब एक बड़ी आकाशीय घटना जोकि किसी उल्का पिंड के धरती से टकरा जाने के कारण  जिसके बाद से डायनोसॉर् का कोई प्रमाणित सबूत नहीं मिला है।


अब तक डायनोसॉर के इतिहास के बारे में हमें बड़ी और पुख्ता जानकारी नहीं है लेकिन उनकी रोमांचक और रहस्यमयी रोचकता की वजह से वे धारा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। वैज्ञानिक  लोग अब भी डायनोसॉर् के अध्ययन में लगे हुए हैं और नई जानकारी एकत्रित करने की कोशिश कर रहें हैं।


डायनोसोर के विलुप्त होने के कारण 

डायनोसॉर के विलुप्त होने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण माना जाता है ज्यामिति प्रलय या "डायनोसॉर का बड़ा नाश"। यह प्रलय करीब 65 मिलियन वर्ष पहले हुआ था और इसके परिणाम स्वरूप डायनोसॉर् का धरती से अंत हो गया।


ज्यामिति प्रलय एक विशाल घटना थी जिसके कारण आकाश में एक बड़ा सा गोला या उल्का पिंड भूमि मे आकर  टकराया। यह घटना धरती पर बहुतायत विस्फोटों, भूकंपों, अग्निप्रलयों और तेज वायुमंडलीय बदलावों का कारण बनी। इससे वनस्पति और जीव-जन्तुओं के लिए जीवन बहुत मुश्किल हो गया और इसके परिणाम स्वरूप डायनोसॉर् की प्रजातियां बिल्कुल नष्ट हो गईं।


इसके अलावा, अन्य कारणों में जंगली नाश, जलवायु परिवर्तन, खाद्य संसाधनों की कमी, और प्राकृतिक परिवर्तनों जैसे उष्णकटिबंधीय युगों का अस्तित्व हो सकता है। ये सभी कारण संयुक्त रूप से डायनोसॉर् के प्राकृतिक संसाधनों, आहार और वातावरण को प्रभावित कर सकते थे और उनके विलुप्त होने का कारण बन सकते थे।


यह जानकारी वैज्ञानिक समुदाय द्वारा प्रस्तुत विभिन्न अध्ययनों और ज्ञान के आधार पर है, लेकिन डायनोसॉर् के विलुप्त होने के पर्याप्त सबूत अभी तक मिले नहीं हैं। वैज्ञानिक समुदाय आगे बढ़कर इस विषय पर और अधिक खोज कर रहे हैं ताकि इस रहस्यमयी घटना को समझा जा सके।






डायनासोर के अवशेष अभी भी मिलते हैं 



जी हाँ, डायनोसॉर के अवशेष और अस्थिय अब भी मिलते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा कई जगहों पर डायनोसॉर के अवशेष मिले हैं जैसे कि हड्डियाँ, पंजर, दांत और अन्य अवशेष।


इन अवशेषों को शोधकर्ताओं ने उनके आकार, संरचना और अन्य विशेषताओं के आधार पर डायनोसॉर  के प्रकारों की पहचान की है। इसके अलावा, वनस्पतियों और अन्य जीवों के अवशेषों के साथ इन अवशेषों में डायनोसॉर  के जीवन काल के बारे में ज्ञान भी प्राप्त हुआ है।

ये अवशेष अक्सर खुदाई या पत्थरों के तुड़वाकर प्राप्त होते हैं और विभिन्न भूभागों में खोजे जाते हैं। इन अवशेषों का अध्ययन वैज्ञानिकों को डायनोसॉर के विकास, जीवन काल और अन्य पहलुओं के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

डायनोसॉर युग में, जिसे मीजोजोयिक युग भी कहा जाता है, पृथ्वी का तापमान और जलवायु विभिन्न थे जबकि आधुनिक समय की तुलना में। यह युग क्रेटेसियस युग के बाद आता है और इसकी अवधि लगभग 100 मिलियन वर्ष (10करोड़ वर्ष) तक चली गई।


मीजोजोयिक युग में पृथ्वी का तापमान और जलवायु उष्णकटिबंधीय था। यह युग गर्म और नम जलवायु के साथ संपन्न था। विशाल बाढ़ और मरुस्थल इलाकों के साथ समुद्री जीवन भी उभरा। इस युग में समुद्री निवासी मांसाहारी डायनोसॉर जैसे प्राचीन जीवाश्म भी मिले हैं।


इस युग में पृथ्वी पर सूक्ष्म वृक्षों, समुद्री पौधों, वनस्पतियों और पौधों की बहुतायत थी। जलवायु उष्णकटिबंधीय होने के कारण समुद्री स्रोत में वृद्धि हुई और विशाल समुद्रों की सृजन गतिविधि देखी गई। हाइड्रोथार्पी डायनोसॉर का विस्तार भी इस युग में हुआ।


मीजोजोयिक युग बाद में जब  लघु तापीय सुदूर स्थानों पर तापमान बढ़ा और धीमे धीमे शुरू हुई ज़मीनी गतिविधियों ने जलवायु के बदलाव को उत्पन्न किया, तब डायनोसॉर  का समापन हुआ। उनकी विलुप्ति के मुख्य कारणों में माना जाता है कि उष्णकटिबंधीय जलवायु के परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं, और उनके आहार संसाधनों की कमी शामिल थी।


अब धरती पर इनका आना संभव है?



नहीं, वर्तमान में डायनोसॉर धरती पर फिर से आने की संभावना नहीं है। जैविक अवशेषों के आधार पर और अन्य वैज्ञानिक शोध के आधार पर, ज्यामिति प्रलय के बाद डायनोसॉर् की प्रजातियाँ पूरी तरह से विलुप्त हो गईं।


डायनोसॉर् लगभग 65 मिलियन वर्ष पहले आपदा जैसी घटना के कारण नष्ट हो गए, और उस वक्त से पृथ्वी पर उनका कोई आधिकारिक प्रमाणित खोज नहीं हुआ है। वैज्ञानिक समुदाय के अनुसार, डायनोसॉर के सभी प्रजातियाँ समाप्त हो गईं और आजकल के जीव-जंतु जगत में उनकी कोई पुनर्जन्म संभावना नहीं है।


हालांकि, आधुनिक समय में वैज्ञानिकों ने आगे बढ़कर डायनोसॉर् के रहस्यों को समझने के लिए बहुत सारे अध्ययन किए हैं। इनके माध्यम से हम डायनोसॉर् के जीवन काल के  विकास, आकार, संरचना और प्रकृति को अधिक समझ पा रहे हैं।


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16/06/23

IAS Kaise Bane? – जानिए IAS बनने के लिए क्या पढ़ना पड़ता है | आईएएस (IAS) कैसे बने?

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आईएएस ऑफिसर देश के सबसे उच्च पदाधिकारियों में से एक है जिसके ऊपर केवल मंत्री होते है। IAS बनने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इस परीक्षा में सफल होना इतना आसान नहीं है क्योंकि इसमें सफल होने के लिए बहुत लगन और मेहनत चाहिए. सिविल सर्विस परीक्षा में शामिल होने के लिए किसी भी आवेदक का मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन होना आवश्यक है।


यूपीएससी द्वारा आयोजित आईएएस परीक्षा को पास करने के लिए हर साल लगभग 10 से 15 लाख कैंडिडेट एग्जाम में शामिल होते है लेकिन उनमें से केवल गिने-चुने कैंडिडेट ही सफल हो पाते है क्योंकि यह परीक्षा इतनी आसान नहीं होती।


इस परीक्षा को पास करने के लिए कम्युनिकेशन स्किल व तेज़ दिमाग के साथ-साथ तर्क वितर्क एवं निर्णय लेने की क्षमता, तथा एग्जाम की पूरी जानकारी जैसे- आईएएस क्या है, IAS Banne Ke Liye Subject, IAS Banne Ke Liye Qualification, IAS की तैयारी के लिए Subject कौन से पढ़ने पढ़ते है व इसके लिए कौन सी डिग्री चाहिए आदि मालूम होना चाहिए। IAS Kaise Bane आईएएस ऑफिसर बनने के लिए आपको क्या करना होगा या IAS Banne Ka Process( प्रक्रिया) क्या है, यह सब निचे विस्तार में बताया है।


इसके द्वारा आपको IAS Officer Banne Ki Puri Jankari प्राप्त होगी। 1. 12वीं कक्षा किसी भी विषय से पास करें आईएएस ऑफिसर बनने का यह सबसे पहला कदम होता है। सबसे पहले आपको अपनी 12वीं क्लास किसी भी सब्जेक्ट्स से पास करना होगी। फिर चाहे वह आपने आर्ट्स, कॉमर्स, साइंस या भले मैथ्स सब्जेक्ट्स से ही क्यों की न हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आपने बारहवीं क्लास किस सब्जेक्ट्स से की है।


2. किसी भी स्ट्रीम से अपना ग्रेजुएशन पूरा करें 12वीं क्लास पास करने के बाद स्नातक यानि ग्रेजुएशन की, आपको अपना ग्रेजुएशन किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से किसी भी स्ट्रीम से (जिसमें आपकी रूचि है) करना होगा। यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में आवेदन करने के लिए आपका ग्रेजुएशन पूरा होना आवश्यक है, बिना ग्रेजुएशन के आप इस एग्जाम में शामिल नहीं हो सकते या फिर आप ग्रेजुशन के अंतिम वर्ष में हो तो भी आप एग्जाम दे सकते हैं।


3. UPSC परीक्षा के लिए आवेदन करें ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद आपको UPSC (यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन) द्वारा आयोजित CSE (सिविल सर्विस एग्जाम) पास करनी होती है जोकि, तीन चरणों (प्रीलिमिनरी एग्जाम, मैन एग्जाम और इंटरव्यू) में होती है। हालाँकि यूपीएससी परीक्षा में केवल ग्रेजुएट स्टूडेंट्स या जो फाइनल ईयर के रिजल्ट का इंतज़ार कर रहे है वे ही भाग ले सकते है।


4. Preliminary Exam यूपीएससी परीक्षा में आवेदन करने के बाद आपको IAS का पहला चरण, जिसे प्रारंभिक परीक्षा (Preliminary Examination) कहते है वह क्लियर करना होगा। इस परीक्षा में दो पेपर होते है। जनरल एबिलिटी और सिविल सर्विस एप्टीटुड टेस्ट (CSAT) दोनों ही पेपर में ऑब्जेक्टिव टाइप के प्रश्न पूछे जाते है जो कि मैन एग्जाम के लिए क्वालीफाइंग पेपर होता है। दोनों पेपर 200-200 अंकों के होते है जिन्हे हल करने के लिए 2-2 घंटे का समय दिया जाता है . इन प्रश्नों का जवाब आपको सावधानी से देना होता है क्योंकि हर गलत जवाब पर एक तिहाई अंक की कटौती की जाती है आपको पास होने के लिए 80 नंबर लाना होगा तभी आप prilims exam pass कर पायेंगे ।


5. Main Exam प्रीलिमिनरी एग्जाम को क्लियर करने बाद अब आपको दूसरे चरण यानि कि मैन एग्जाम को क्लियर करना होगा। हालाँकि यह चरण पहले चरण के मुकाबले बहुत कठिन होता है इसमें कुल मिलाकर 9 पेपर होते है:


1 – निबंध, पेपर 2 – सामान्य अध्ययन 1, 3 – सामान्य अध्ययन 2, 4 – सामान्य अध्ययन 3, 5 – सामान्य अध्ययन 4, 6 – वैकल्पिक विषय – पेपर 1, 7 – वैकल्पिक विषय – पेपर 2. इन सभी पेपर में अलग-अलग शब्द सीमा वाले डिस्क्रिप्टिव टाइप के प्रश्न पूछे जाते है। उम्मीदवारों को परीक्षा के माध्यम का चयन करने की अनुमति रहती है। इस परीक्षा के कट-ऑफ को पास कर लेने के बाद ही उन्हें अंतिम चरण यानि पर्सनालिटी टेस्ट में बैठने की अनुमति मिलती है।


6. Interview वे उम्मीदवार जो प्रीलिमिनरी और मैन एग्जाम दोनों क्लियर कर लेते है। उन्हें सिविल सर्विस एग्जाम के अंतिम चरण यानि पर्सनल इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है। जिसमें उनकी रुचियों , सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर्स, और विषम परिस्थिति पैदा होने पर उन्हें क्या करना चाहिए, इत्यादि पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे जाते है. उम्मीदवारों द्वारा दिए गए उत्तरों के आधार पर ही उनका आकलन किया जाता है और यह निश्चय करते है कि क्या वे IAS के पद के लिए योग्य है अथवा नहीं।


7. IAS की ट्रेनिंग आईएएस के सभी चरणों को पार कर लेने के बाद उम्मीदवारों को IAS की 21 महीने की ट्रेनिंग लेना होती है। IAS की ट्रेनिंग लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकेडमी ऑफ ऐडमिनिस्ट्रेशन से शुरू होती है और उसके बाद उन्हें 12 महीने के लिए जिला परिक्षण का काम दिया जाता है। इस ट्रेनिंग को पूरा करने के बाद ही वे IAS ऑफिसर की पोस्ट संभालने के लिए योग्य बन पाते है।


आईएएस ऑफिसर (IAS Officer) IAS जिसे ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ अधिकारी के नाम से जाना जाता है। किसी जिले विशेष का एक मुख्य अधिकारी होता है । यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन यानि UPSC एग्जाम में टॉप रैंक प्राप्त करने वाले कैंडिडेट को IAS Officer के पद पर नियुक्त किया जाता है। UPSC (यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन) द्वारा हर साल लगभग 24 सिविल सर्विसेज के पदों को भरने के लिए एक परीक्षा का आयोजन किया जाता है। परीक्षा में प्राप्त किये गए अंकों व मेरिट लिस्ट के आधार पर कैंडिडेट को IAS, IPS और IFS इत्यादि पदों के लिए नियुक्त किया जाता है।


राष्ट्रीयता आवेदक भारतीय नागरिक (Indian Citizen) होना चाहिए है। आयुसीमा आईएएस ऑफिसर बनने के लिए न्यूनतम आयुसीमा 21 वर्ष है , जबकि अधिकतम आयुसीमा हर वर्ग (SC/ST/OBC/General) के लिए अलग-अलग है। हालाँकि आरक्षित वर्गों को इसमें छूट का प्रावधान है।


वर्ग (Category) अधिकतम आयु सीमा (Upper Age Limit) कितने साल की छूट जनरल केटेगरी 32 वर्ष कोई छूट नहीं OBC केटेगरी 35 वर्ष 3 साल SC/ST केटेगरी 37 वर्ष 5 साल विकलांग केटेगरी 42 केटेगरी प्रयासों की संख्या जनरल केटेगरी 6 OBC केटेगरी 9 SC/ST केटेगरी Unlimited (कोई सीमा नहीं) PWD General 9 IAS Banne के लिए सिलेबस आईएएस अधिकारी या आईएएस बनने के लिए सब्जेक्ट का चयन बहुत ज़रूरी होता है। अगर आप ग्रेजुएशन में Political Science (राजनीति विज्ञान), Geography (भूगोल), History (इतिहास), Economics (अर्थशास्त्र), Philosophy (दर्शनशास्र) या Public Administration (सार्वजनिक प्रशासन) आदि में से कोई भी सब्जेक्ट लेते है, तो आपकी ग्रेजुएशन के साथ-साथ आईएएस की भी तैयारी होती रहेगी।


IAS Salary in Hindi (आईएएस सैलरी) आईएएस ऑफिसर की सैलरी प्रति माह 56,100/- से शुरू होती है और कैबिनेट सचिव पद के लिए 2,50,000/- तक जा सकती है। इसके साथ ही आईएएस अधिकारी को आवास (Accommodation) और परिवहन (Transportation) की सुविधा भी प्रदान की जाती है। जिस क्षेत्र में उनकी पोस्टिंग होती है वहां रहने के लिए डुप्लेक्स बंगला और यात्रा के लिए वाहन ड्राइवर कुक के साथ दिया जाता है।

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14/06/23

Cripto currency kya hai क्रिप्टोकरेंसी क्या है ?

Cripto currency kya hai

 क्रिप्टोकरेंसी क्या है ?






क्रिप्टोकरेंसी एक डिजिटल या आभासी मुद्रा है जो सुरक्षा के लिए क्रिप्टोग्राफी का उपयोग करती है।यह एक विकेंद्रीकृत मुद्रा है, जिसका अर्थ है कि यह किसी भी सरकार या संस्था द्वारा नियंत्रित नहीं है।क्रिप्टोकरेंसी के कुछ उदाहरणों में बिटकॉइन, एथेरियम और लाइटकॉइन शामिल हैं। आगे बताते है कि क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करती है?

क्रिप्टोकरेंसी के साथ लेन-देन ब्लॉकचैन नामक एक सार्वजनिक digital खाता-बही पर दर्ज किया जाता है। यह बही-खाता दुनिया भर के कंप्यूटरों के एक नेटवर्क द्वारा बनाकर रखा जाता है और प्रत्येक नए लेन-देन को सत्यापित किया जाता है साथ ही, इन कंप्यूटरों द्वारा ब्लॉकचेन में जोड़ा जाता है।

क्रिप्टोग्राफी के इस विकेंद्रीकरण और उपयोग से किसी के लिए भी मुद्रा या ब्लॉकचेन पर रिकॉर्ड किए गए लेन-देन में हेर-फेर करना मुश्किल हो जाता है।

क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करने के लिए व्यक्तियों या व्यवसायों को पहले एक डिजिटल वॉलेट प्राप्त करना होगा, जो एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जो उपयोगकर्त्ता की सार्वजनिक और निजी कुंजियों (केस) को संग्रहीत करता है। इन कुंजियों का उपयोग क्रिप्टोकरेंसी भेजने और प्राप्त करने के लिए किया जाता है साथ ही, ब्लॉकचेन पर लेन-देन को verify करने के लिये भी किया जाता है।

उपयोगकर्त्ता "माइनिंग" नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी प्राप्त कर सकते हैं जिसमें जटिल गणितीय समीकरणों को हल करने के लिए कंप्यूटर की क्षमता का उपयोग करना शामिल है, जो क्रिप्टोकरेंसी की एक निश्चित राशि के बदले में ब्लॉकचैन पर लेन-देन को मान्य और रिकॉर्ड करता है।

ब्लॉकचेन तकनीक क्या है?

ब्लॉकचेन तकनीक एक विकेन्द्रीकृत, डिजिटल बही-खाता है जो कंप्यूटर के एक नेटवर्क में लेन-देन रिकॉर्ड करती है। शृंखला में प्रत्येक ब्लॉक में कई लेन-देन होते हैं, और हर बार ब्लॉकचेन पर एक नया लेन-देन होता है, उस लेन-देन का एक रिकॉर्ड प्रत्येक प्रतिभागी के बही-खाता में जोड़ा जाता है।

प्रौद्योगिकी की विकेन्द्रीकृत प्रकृति यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी इकाई उच्च स्तर की सुरक्षा और पारदर्शिता प्रदान करते हुए पिछले लेन-देन को बदल या हटा नहीं सकती है। ब्लॉकचैन बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी की नींव है, लेकिन डिजिटल मुद्राओं से परे इसके कई संभावित उपयोग हैं।

क्रिप्टोकरेंसी के कुछ उदाहरण

बिटकॉइन (BTC):

यह पहली और सबसे प्रसिद्ध क्रिप्टो करेंसी है, जिसे वर्ष 2009 में बनाया गया था। बिटकॉइन का आविष्कार एक अज्ञात व्यक्ति या सातोशी नाकामोतो नाम का उपयोग करने वाले लोगों के समूह द्वारा किया गया था और इसे वर्ष 2009 में ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर के रूप में जारी किया गया था। इसे पहली विकेन्द्रीकृत क्रिप्टोकरेंसी माना जाता है।

बिटकॉइन का कोई एकल व्यवस्थापक नहीं है एवं मुद्रा को बिचौलियों की आवश्यकता के बिना पीयर-टू-पीयर बिटकॉइन नेटवर्क पर उपयोगकर्त्ता द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से भेजा जा सकता है। लेन-देन को क्रिप्टोग्राफी के माध्यम से नेटवर्क नोड्स द्वारा सत्यापित किया जाता है और एक सार्वजनिक वितरित बही-खाता में रिकॉर्ड किया जाता है जिसे ब्लॉकचेन कहा जाता है।

एथेरियम (ETH):

एथेरियम (ETH) एक विकेन्द्रीकृत, ओपनसोर्स ब्लॉकचैन प्लेटफॉर्म है जो स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स और विकेंद्रीकृत अनुप्रयोगों (Apps) के निर्माण को सक्षम बनाता है।

यह एथेरियम नेटवर्क पर लेन-देन शुल्क और सेवाओं के भुगतान के साधन के रूप में अपने स्वयं के क्रिप्टोकरेंसी, ईथर का उपयोग करता है। इसमें एक अंतर्निहित प्रोग्रामिंग भाषा भी है जो डेवलपर्स को एथेरियम नेटवर्क पर अपने स्वयं के विकेन्द्रीकृत अनुप्रयोगों को बनाने और तैनात करने में सक्षम बनाती है।

लाइटकॉइन (LTC):

Litecoin (LTC) एक पीयर-टू-पीयर क्रिप्टोकरेंसी और ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट है। यह बिटकॉइन (btc) से प्रेरित और लगभग समान है, लेकिन लेन-देन की पुष्टि करने कम समय लेता है और एक अलग हैशिंग एल्गोरिदम के साथ‌ है। इसे बिटकॉइन की तुलना में छोटे लेन-देन को तेज़ी से और अधिक कुशलता से संसाधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

रिपल (Ripple: XRP):

Ripple (XRP) एक डिजिटल एसेट और क्रिप्टो करेंसी है जिसे तेज़ और सस्ते अंतर्राष्ट्रीय धन हस्तांतरण की सुविधा के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह रिपल प्रोटोकॉल पर बनाया गया है, जो सीमा पार भुगतान की सुविधा के लिए एक विकेन्द्रीकृत ओपन-सोर्स प्रोटोकॉल है।

Ripple का उपयोग USD, EUR और Bitcoin सहित किसी भी मुद्रा को स्थानांतरित करने के लिए किया जा सकता है और इससे डिजिटल मुद्रा एक्सचेंजों पर भी कारोबार किया जा सकता है।

बिटकॉइन कैश (BCH):

बिटकॉइन कैश (BCH) एक क्रिप्टो करेंसी है जिसे वर्ष 2017 में बिटकॉइन से हार्ड फोर्क के परिणामस्वरूप बनाया गया था।

बिटकॉइन (1MB) की तुलना में इसकी बड़ी ब्लॉक आकार सीमा (8MB) है, जिससे तेज़ और सस्ते लेन-देन की अनुमति मिलती है।

कुछ लोगों द्वारा इसे बिटकॉइन का "शुद्ध" संस्करण माना जाता है क्योंकि यह बिटकॉइन के मूल विज़न, पीयर टू पीयर इलेक्ट्रॉनिक कैश सिस्टम के रूप में, का अधिक बारीकी से पालन करता है।

क्रिप्टोकरेंसी की कानूनी स्थिति क्या है?

भारत में क्रिप्टोकरेंसी की कानूनी स्थिति निरंतर बदलाव की प्रक्रिया में है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग के विरुद्ध कई चेतावनियाँ जारी की हैं, जिसमें कहा गया है कि वे निवेशकों के लिए जोखिम पैदा करते हैं और कानूनी निविदा नहीं हैं।

वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिज़र्व बैंक के एक सर्कुलर को रद्द कर दिया, जो वित्तीय संस्थानों को डिजिटल या क्रिप्टोकरेंसी में लेन-देन करने से रोकता है।

वर्ष 2022 में, भारत सरकार ने केंद्रीय बजट 2022-23 में उल्लेख किया कि-किसी भी आभासी मुद्रा/क्रिप्टोकरेंसी संपत्ति का हस्तांतरण 30% कर कटौती के अधीन होगा। सरकार ने ब्लॉकचैन प्रौद्योगिकी के संभावित उपयोग और सेंट्रल बैंक जारी करने की संभावना का पता लगाने के लिए एक पैनल भी स्थापित किया है।

डिजिटल करेंसी (CBDC)

वर्तमान में अल सल्वाडोर और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक (CAR) दुनिया में केवल दो देश हैं जहां बिटकॉइन कानूनी मुद्रा के रूप में कार्य करता है। हालाँकि कई देशों ने बिटकॉइन जैसी कुछ क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग को पहचानने और विनियमित करने के लिए कदम उठाए हैं। जापान और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ देशों ने क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों के लिए नियम जारी किए हैं।

जर्मनी और स्विटज़रलैंड जैसे देशों ने बिटकॉइन को "भुगतान के कानूनी साधन" के रूप में मान्यता दी है।

चीन और रूस जैसे अन्य देशों ने अधिक सतर्क रुख अपनाया है और क्रिप्टोकरेंसी के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया है।

भारत की सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा क्या है?

आरबीआई द्वारा रिटेल segment में लॉन्च किए गए सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) पायलट में ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित घटक हैं। CBDC कागज़ी मुद्रा का एक डिजिटल रूप है और एक नियामक निर्वात में संचालित होने वाली क्रिप्टोकरेंसी के विपरीत, ये एक केंद्रीय बैंक द्वारा जारी और समर्थित कानूनी निविदाएँ हैं।

यह फिएट करेंसी के समान है और फिएट करेंसी के साथ वन-टू-वन विनिमेय है। डिजिटल मुद्रा भारतीय रुपए के डिजिटल संस्करण को संदर्भित करती है, जिसे डिजिटल रुपए या ई-रुपए के रूप में भी जाना जाता है।

Cripto currency kya hai

 क्रिप्टोकरेंसी की चुनौतियाँ

अस्थिरता: क्रिप्टोकरेंसी की कीमतें अत्यधिक अस्थिर हैं जिससे व्यवसायों के लिए इसे भुगतान के रूप में स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है।

विनियमन: क्रिप्टोकरेंसी के स्पष्ट विनियमन की कमी है जिससे व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए यह जानना मुश्किल हो जाता है कि कानूनी रूप से इसका उपयोग कैसे किया जाए।

सुरक्षा: क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज और वॉलेट हैकिंग हमलों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप धन की हानि हो सकती है।

अडॉप्शन (Adoption): इसकी बढ़ती लोकप्रियता के बावजूद, क्रिप्टोकरेंसी में अभी भी अडॉप्शन की दर कम है जिससे व्यक्तियों के लिए इसे रोज़मर्रा की जिंदगी में भुगतान के रूप में उपयोग करना मुश्किल हो जाता है।

मापनीयता: क्रिप्टोकरेंसी की मापनीयता सीमित है, जिससे बड़ी संख्या में लेन-देन को संभालना इस तकनीक के लिए मुश्किल हो जाता है।

क्रिप्टोकरेंसी की कानूनी स्थिति पर स्पष्टता उनके व्यापक रूप से अपनाने और उपयोग के लिए महत्त्वपूर्ण है। जब सरकारें क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान करती हैं, तो यह व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए निवेश करने और उनका उपयोग करने के लिए एक अधिक स्थिर वातावरण बनाती है। यह उद्योग में नवाचार और विकास को भी प्रोत्साहित कर सकता है।

अल सल्वाडोर और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक जैसे देशों के उदाहरणों से पता चलता है कि सरकारें इस नई तकनीक को अपना सकती हैं और इसके फलने-फूलने के लिए अनुकूल माहौल बना सकती हैं।

RBI ने ब्लॉकचेन-आधारित सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) पायलट प्रोग्राम शुरू किया है। सरकार को इसे ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि क्रिप्टोकरेंसी ब्लॉकचेन तकनीक पर भी आधारित है।

एक मज़बूत नियामक ढांचे के साथ क्रिप्टोकरेंसी लॉन्च करने से इसका उचित उपयोग सुनिश्चित हो सकता है, धोखाधड़ी और अवैध गतिविधियों को रोका जा सकता है और उपभोक्ता संरक्षण में वृद्धि हो सकती है। दूसरी ओर क्रिप्टोकरेंसी का पूर्ण प्रतिबंध नवाचार को बाधित कर सकता है और समाज को इसके संभावित लाभों को सीमित कर सकता है।

माल या परिसंपत्ति वर्गों के रूप में क्रिप्टोकरेंसी का वर्गीकरण अभी भी अस्पष्ट है और भारत सहित कई देशों में परिवर्तन के अधीन है। वर्तमान में, सॉफ्टवेयर को एक अच्छा माना जाता है और इस पर भारतीय कानून के तहत कर लगाया जा सकता है। क्रिप्टोकरेंसी की बिक्री से होने वाले लाभ और कमाई को कर योग्य आय माना जाता है, लेकिन केवल क्रिप्टोकरेंसी के वैधीकरण के बाद।


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NCERT क्या है

 NCERT क्या है

NCERT (National Council of Educational Research and Training)




 भारतीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद है, जो भारत सरकार द्वारा स्थापित की गई है। NCERT की स्थापना 1961 में हुई थी और इसका मुख्यालय नई दिल्ली, में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य उच्चतर माध्यमिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में सामरिकता और गुणवत्ता को प्रोत्साहित करना है।


NCERT एक संगठन है और विभिन्न शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालयों और अन्य संगठनों के सहयोग से अपने उद्देश्यों को पूरा करता है। इसके लिए, NCERT द्वारा विभिन्न विषयों में पाठ्यपुस्तकों, कक्षा के लिए पाठ योजनाओं, गणितीय प्रश्न-पत्रों, अध्ययन सामग्री और अन्य शिक्षा संबंधित सामग्री का निर्माण, संशोधन और प्रकाशन किया जाता है।


NCERT की पाठ्य पुस्तकें और संबंधित सामग्री भारतीय शिक्षा प्रणाली में अहम भूमिका निभाती हैं। इन पाठ्य पुस्तकों का उद्देश्य छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और आधारभूत शिक्षा प्रदान करना है।NCERT की पाठ्य पुस्तकें प्रमाणित शिक्षकों और छात्रों के लिए आदर्श मानी जाती हैं और राष्ट्रीय स्तर पर उच्च गुणवत्ता की मान्यता प्राप्त करती हैं।


NCERT अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए विभिन्न शिक्षा प्रोग्रामों, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों, सेमिनारों, कार्यशालाओं और संबोधनों का आयोजन करता है। यह अपने शिक्षा सामग्री को भाषाओं, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित, विज्ञान और अन्य विषयों में प्रकाशित करता है।


NCERT की शिक्षा सामग्री सरकारी और निजी स्कूलों में उपयोग होती है और इसका उद्देश्य सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और समान शिक्षा प्रदान करना है। NCERT की सामग्री में आधारभूत ज्ञान, प्रायोगिकता, और विचारशीलता को बढ़ावा दिया जाता है ताकि छात्रों की समझ और विकास को बढ़ाया जा सके।


संक्षेप में कहें तो, NCERT (राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण संगठन है जो छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और समान शिक्षा प्रदान करने का कार्य करता है। यह शिक्षा सामग्री का निर्माण, प्रकाशन और अन्य शिक्षा संबंधित कार्यों का आयोजन करता है ताकि छात्रों की शिक्षा और विकास को समृद्ध किया जा सके।


NCERT (राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के कई लाभ हैं। यहां कुछ मुख्य लाभों को उद्घाटित किया गया है:


1. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामग्री: NCERT द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पाठ्यपुस्तकें और सामग्री गुणवत्तापूर्ण और आधारभूत शिक्षा सामग्री होती हैं। इनका उपयोग सरकारी और निजी स्कूलों में होता है और यह सुनिश्चित करता है कि छात्रों को समान और मान्यता प्राप्त शिक्षा मिलती है।


2. एकीकृत पाठ्यक्रम: NCERT के द्वारा तैयार किए गए पाठ्यक्रम एकीकृत होते हैं जो छात्रों के लिए स्थायी मूल्य होते हैं। इन पाठ्यक्रमों में गुणवत्तापूर्ण और समान सामग्री शामिल होती है जो छात्रों को एक बारे में प्राप्त करने और उनकी प्रगति को मापने में मदद करती है।


3. शिक्षक प्रशिक्षण: NCERT शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करता है जो शिक्षकों को उनकी प्रोफेशनल विकास में सहायता प्रदान करते हैं। ये कार्यक्रम शिक्षकों को नवीनतम शिक्षणक तकनीकों, शिक्षण माध्यमों, मूल्यों और शिक्षा के सम्बन्धित नवीनतम अद्यतनों के साथ अवगत कराते हैं।


4. अनुसंधान और विकास: NCERT अनुसंधान कार्यों का समर्थन करता है जो शिक्षा के क्षेत्र में नवीनतम विचारों और प्रगति को प्रोत्साहित करते हैं। इसके माध्यम से शिक्षा संबंधित अनुसंधान, अध्ययन, गुणवत्ता मानकों का समीक्षण और शिक्षा प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया को संचालित किया जाता है।


इस प्रकार, NCERT छात्रों और शिक्षकों के लिए विभिन्न लाभ प्रदान करता है और भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


NCERT (राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) का महत्वपूर्ण स्थान भारतीय शिक्षा प्रणाली में है। यह कई महत्वपूर्ण कारणों से महत्वपूर्ण है:


1. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सामग्री: NCERT द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पाठ्यपुस्तकें और सामग्री गुणवत्तापूर्ण और मान्यता प्राप्त होती हैं। इन पाठ्यपुस्तकों का अपडेट नियमित रूप से किया जाता है ताकि विद्यार्थी नवीनतम ज्ञान और वर्तमान में घटित घटना की जानकारी प्राप्त कर सकें।


2. अद्यतित शिक्षा मानक: NCERT शिक्षा मानकों का अद्यतन करता है और नवीनतम शिक्षण प्रणाली, तकनीक और विचारों को शामिल करता है। इसके माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में नवीनतम विचारों का प्रसार होता है और विद्यार्थियों को आधुनिक और संबद्ध शिक्षा प्रदान की जाती है।


3. शिक्षक प्रशिक्षण: NCERT शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करता है जो शिक्षकों को उनकी प्रोफेशनल विकास में सहायता प्रदान करते हैं। ये कार्यक्रम शिक्षकों को नवीनतम शिक्षण तकनीकों, उपायोगी संसाधनों और शिक्षा मानकों के साथ सुसंगत बनाते हैं।


4. अनुसंधान और विकास: NCERT शिक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान कार्यों का समर्थन करता है और नवीनतम विचारों, तकनीकों और शिक्षा प्रणाली के विकास को प्रोत्साहित करता है। इसके माध्यम से शिक्षा में सुधार के लिए आवश्यक अद्यतन और बदलाव किए जाते हैं।


यहीं नहीं, NCERT का एक अन्य महत्वपूर्ण आयोजन है "राष्ट्रीय ओपन स्कूल" जो आम तौर पर अवसरवादी शिक्षा प्रणाली के तहत छात्रों को शिक्षा प्रदान करता है।


इस प्रकार, NCERT भारतीय शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और छात्रों और शिक्षकों के लिए महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करता है।


सारांशतः NCERT (राष्ट्रीय शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक महत्वपूर्ण संगठन है। इसका मुख्य उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण और समान शिक्षा प्रदान करना है। NCERT द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पाठ्य पुस्तकें, सामग्री, और शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम छात्रों और शिक्षकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा साधनों से लाभान्वित करते हैं।


 इसके अलावा, NCERT अनुसंधान और विकास को समर्थन करता है ताकि शिक्षा में नवीनतम विचारों और प्रगति को प्रोत्साहित किया जा सके। NCERT ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भारतीय सरकार, शिक्षा संस्थानों, विश्वविद्यालयों और अन्य संगठनों के सहयोग का लाभ उठाया है। NCERT अपने महत्वपूर्ण कार्यों के माध्यम से शिक्षा क्षेत्र में सुधार और विकास को संचालित करता है और भारतीय शिक्षा प्रणाली को मजबूत और सामर्थ्यपूर्ण बनाने के लिए अहम योगदान देता है।

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13/06/23

टैलिप्राम्प्टर (Teleprompter) क्या होता हैं और ये कैसे काम करता है?

 Teleprompter kya hai 

  टेलीप्रोम्प्टर क्या है ?

टेलीप्रोम्प्टर एक उपकरण है जो लाइव भाषण, प्रस्तुति, संचार या मीडिया उत्पादन के दौरान सहायता प्रदान करता है । यह उपकरण उच्चारण,  शब्द और बोली द्वारा प्रस्तुति करने वाले वक्ताओं को संचार करने में सहायता करता है । यह टेक्नोलॉजी विभिन्न क्षेत्रों जैसे टेलीविजन, संचार, फिल्म उद्योग, स्पीचेस और प्रस्तुति को उनके प्रशंसकों या दर्शकों के सामने आसान बनाने के लिए उपयोग किया जाता है । 




  टेलीप्रोम्प्टर का प्राथमिक उपयोग वक्ता को उनके भाषण, प्रस्तुति या अभिभाषण का समर्थन करने के लिए होता है । यह एक उपकरण होता है जिसमें लिखा या तैयार किया गया पाठ स्क्रीन पर प्रदर्शित होता है, जिसे वक्ता सीधे देख सकता है । वक्ता को टेलीप्रोम्प्टर के पीछे स्थापित करीब 45 डिग्री की दिशा में खड़े होने की आवश्यकता होती है । जब वक्ता टेलीप्रोम्प्टर के पीछे खड़ा होता है, तो उनके सामने स्क्रीन पर प्रदर्शित होने वाला पाठ दिखने लगता  है । यह पाठ स्क्रीन पर स्थिर रहता है और वक्ता को इसे पढ़ने के लिए आंखों को एक स्थान में ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता नहीं होती है । 

  टेलीप्रोम्प्टर में एक स्पीड कंट्रोलर होता है जिसका उपयोग करके वक्ता अपनी प्रस्तुति की गति को नियंत्रित कर सकता है । वक्ता को लाइन द्वारा दिखाए जाने वाले पाठ को आगे या पीछे करने की अनुमति दी जाती है, जिससे वे बिना टेक्स्ट को भूले या टेक्स्ट के साथ पाठ करने के बिना अपनी प्रस्तुति पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं । इस तरीके से, टेलीप्रोम्प्टर वक्ता को उच्चारण और वक्तव्य के साथ अभिव्यक्ति करने के लिए सुविधाजनक माध्यम प्रदान करता है ।   


Telipromter आमतौर पर वाणिज्यिक टेलीविजन, प्रसारण, जगह- जगह भाषण, फिल्म निर्माण और न्यूज़ कास्टिंग के क्षेत्रों में उपयोग होता है । यह वक्ताओं को अवधारित करने में मदद करता है और उन्हें उच्चारण और वक्तव्य के साथ संचार करने का एक अच्छा माध्यम प्रदान करता है । इसके अलावा, telipromter कई संचार उद्योगों में लाइव इवेंट्स, संगठनिक सभाएं, प्रशासनिक प्रस्तावों, शिक्षा और प्रशिक्षण के कार्यक्रमों, और अन्य अवसरों में भी उपयोगी हो सकता है । 

Teleprompter kya hai 


टेलीप्रोम्प्टर के अलावा, इसके साथ-साथ कुछ अतिरिक्त उपकरण भी हो सकते हैं जो वक्ताओं को उच्चारण और प्रस्तुति करने में मदद करते हैं। जिनमे ये शामिल हो सकते हैं:


1. माइक्रोफोन: एक अच्छी गुणवत्ता वाला माइक्रोफोन वक्ता की आवाज को पकड़ता है और उच्चारण को बेहतर ढंग से प्रसारित करता है। इसका उपयोग भाषण या प्रस्तुति के दौरान वक्ता की आवाज की स्पष्टता और गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।


2. वीडियो कैमरा: इसका उपयोग वीडियो प्रस्तुतियों में किया जाता है, जिससे वक्ता की उपस्थिति और व्यक्तित्व को दर्शाने में मदद मिलती है। वीडियो कैमरा वक्ता को संप्रदान की ओर दिखाता है और दर्शकों को उनके भाषण के साथ संपन्नता प्रदान करता है।


3. लाइटिंग उपकरण: उच्चारण या प्रस्तुति के दौरान ठीक से प्रकाशित होना वक्ता के लिए महत्वपूर्ण होता है। सुविधाजनक लाइटिंग उपकरण उच्चारण क्षेत्र को चमकदार, सुंदर और दृश्यमान बनाने में मदद करते हैं। इसके लिए प्रकाश ट्रिपॉड, स्टूडियो लाइट, रिंग लाइट और दूसरे लाइटिंग उपकरण शामिल हो सकते हैं।


4. वीडियो मिक्सर: यह उपकरण वीडियो प्रस्तुतियों में अलग-अलग वीडियो स्रोतों को संगठित करने और संपादित करने के लिए उपयोगी होता है। वीडियो मिक्सर दर्शकों को एकमात्र स्क्रीन पर वक्ता को देखने की सुविधा प्रदान करता है और वीडियो प्रस्तुति को समृद्धित करने में मदद करता है।


ये उपकरण टेलीप्रोम्प्टर के साथ आमतौर पर उपयोग होते हैं और वक्ता को उच्चारण और प्रस्तुति करने में सहायता प्रदान करते हैं। इनका उपयोग वक्ता के प्रदर्शन को बेहतर और सुविधाजनक बनाने के लिए किया जाता है।


टेलीप्रोम्प्टर के कई लाभ हैं, जो निम्नलिखित हैं:


1. अच्छा संचार: टेलीप्रोम्प्टर वक्ताओं को सुविधाजनक तरीके से अपने भाषण और प्रस्तुति को संचार करने में मदद करता है। वक्ता टेक्स्ट को पढ़ते हुए देखता है, जिससे उन्हें उच्चारण के साथ अच्छी प्रतिभा और संवेदनशीलता मिलती है। यह संचार को सुगम बनाता है और उच्चारण की गलतियों को कम करता है।


2. आत्मविश्वास की वृद्धि: टेलीप्रोम्प्टर वक्ताओं को संचार करते समय सुरक्षित और सुरक्षित महसूस करने में मदद करता है। उन्हें प्रतियोगिता और जनसाधारण के सामने बेहतर रहने का विश्वास होता है। वे स्वतंत्र रूप से प्रस्तुति कर सकते हैं और उच्चारण या याददाश्त के चिंताओं से मुक्त होते हैं।


3. समय की बचत: वक्ताओं को अपने भाषण या प्रस्तुति के लिए अधिक समय की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि वे टेलीप्रोम्प्टर के माध्यम से तैयार टेक्स्ट का उपयोग कर सकते हैं। इससे वक्ताओं को अधिक समय में और प्रभावी ढंग से व्यक्त करने का मौका मिलता है।


4. वक्ता-दर्शक संपर्क: टेलीप्रोम्प्टर वक्ता को सीधे दर्शकों की ओर देखने और उनके साथ संपर्क करने की सुविधा प्रदान करता है। वक्ता भाषण करते हुए भी दर्शकों को नजर रख सकता है, जिससे वक्ता-दर्शक संपर्क मजबूत होता है और प्रस्तुति को सुंदरता से बढ़ाता है।


5. उत्कृष्ट प्रस्तुति: टेलीप्रोम्प्टर का उपयोग करके वक्ताओं को उच्चारण, उच्चारण की मध्यम गति और भाव पर अधिक ध्यान दिया जा सकता है। इससे वे अपनी प्रस्तुति को और अधिक प्रभावी और प्रभावशाली बना सकते हैं।


यदि उच्चारण, प्रस्तुति, और संवाद में सुधार करने की आवश्यकता है, तो टेलीप्रोम्प्टर एक उपयुक्त और प्रभावी उपकरण हो सकता है जो वक्ताओं को सुविधाजनक तरीके से अपनी प्रस्तुति को संचार करने में मदद करता है।


वर्तमान में भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी इसका ही प्रयोग करते हुए अपना भाषण देते हैं ।

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11/06/23

Aqua farming kya hai (एक्वा फार्मिंग)

 Aqua farming kya hai  (एक्वा फार्मिंग) 




जलीय कृषि (एक्वा फार्मिंग) एक ऐसी कृषि विधि है जिसमें विभिन्न प्रकार के जलीय जीवों जैसे मछली, शिप, संग्रहीत पानी के मेंढ़क आदि का उत्पादन किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मांस वाले जीवों की वृद्धि और उत्पादन को सुधारना होता है। जलीय कृषि में जलाशय, तालाब, नदी, समुद्र, और अन्य जल स्रोतों का उपयोग किया जाता है।


जलीय कृषि के तीन प्रकार की होती हैं:

1. मछली पालन : मछली पालन मे तालाब में मछली पाली जाती है और उनकी प्रमुखता से मांस उत्पादित की जाती है। मछली पालन के लिए विशेष प्रकार के जलीय जीवों को पोषण, संरक्षण, और उनकी देखभाल की आवश्यकता होती है।

2. इक्ट्ठा पानी का प्रबंधन: इसमें तालाब को एकत्रित पानी के उत्पादन के लिए प्रबंधित किया जाता है। यहां प्राकृतिक या मानव निर्मित जल स्रोतों का उपयोग किया जाता है जैसे कि नहर, नदी, जलाशय, और उपनदी।

3. जलीय पौधों का उत्पादन : इसमें तलाब में जलीय पौधों का उत्पादन किया जाता है जिनका उपयोग खाद्य, औषधीय उत्पादों और पर्यावरण संरक्षण में किया जा सकता है। जलीय पौधों का उत्पादन मुख्य रूप से हाइड्रोपोनिक्स और नियंत्रित पानी प्रणाली के माध्यम से किया जाता है।


जलीय कृषि के लाभों में शामिल हैं:


उच्च उत्पादकता : जलीय कृषि के अंतर्गत तलाब में उच्च मात्रा में पोषण और संरक्षण के कारण जलीय जीवों की वृद्धि अधिक होती है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।


 जल संरक्षण : जलीय कृषि में पानी के उपयोग का प्रबंधन स्थानीय स्तर पर होता है, जिससे पानी की संरक्षा की जा सकती है।

Aqua farming kya hai (एक्वा फार्मिंग) 



कृषि क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करना : जलीय कृषि से उत्पादित मांस, मछली, और जलीय पौधे कृषि क्षेत्र की विविधता को पूरा करने में मदद करते हैं।


जलीय कृषि भारत में भी अधिकांशतः विकसित नहीं है, लेकिन यह एक उच्च पोषक मानव उत्पादन की संभावनाएं प्रदान कर सकती है। यह कृषि विधि न केवल उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती है, बल्कि साथ ही जल संरक्षण और पर्यावरणीय सुधार को भी प्रोत्साहित करती है। जलीय कृषि के अतिरिक्त फायदों के रूप में निम्नलिखित माने जा सकते हैं:


 पर्यावरण संरक्षण : जलीय कृषि पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करती है। इसके लिए केवल कम मात्रा में जल का उपयोग होता है और जल प्रदूषण की संभावना कम होती है। साथ ही, इसमें जलमंडल में रहने वाले जीवों के नियमित उत्पादन के कारण प्राकृतिक जीवन को भी संरक्षित रखा जा सकता है।

 जल वितरण का सुधार : जलीय कृषि उचित जल वितरण को सुनिश्चित करने के लिए मदद कर सकती है। इसके द्वारा नदियों, जलाशयों और जल स्रोतों का अनुचित उपयोग कम हो सकता है और जल के संचयन का संभवतः बेहतर तरीके से नियंत्रण किया जा सकता है।

तकनीकी विकास : जलीय कृषि तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करती है। इसमें उच्च गुणवत्ता के जलमंडल, उत्पादन और प्रबंधन के लिए नवीनतम तकनीकी सुविधाएं उपयोग की जा सकती हैं। यह उद्यमिता, अनुसंधान, और तकनीकी नवाचार को प्रोतसाहित करके कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को बढ़ावा देती है।

अवकाशीय पर्यटन : जलीय कृषि अवकाशीय पर्यटन को बढ़ावा देती है। जलीय पौधों के उत्पादन, मछली पकड़ और पानी में विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से पर्यटन के आकर्षक आयाम विकसित किए जा सकते हैं। यह पर्यटन क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करती है और स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुधारती है।


इस प्रकार, जलीय कृषि एक समृद्ध और प्रभावी कृषि विधि है जो खाद्य सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण, और आर्थिक विकास के साथ-साथ तकनीकी विकास को बढ़ावा देती है।

जलीय कृषि के अलावा, इसके अन्य फायदों में शामिल हैं ।

Aqua farming kya hai  (एक्वा फार्मिंग) 


 खाद्य सुरक्षा : जलीय कृषि एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकती है खाद्य सुरक्षा के लिए। इसके माध्यम से अधिक मात्रा में मछली और जलीय पौधे उत्पादित किए जा सकते हैं, जो आहार संसाधनों को वृद्धि देते हैं।

 प्राकृतिक पारिस्थितिकी और जल संरक्षण: जलीय कृषि में उपयोग किए जाने वाले तंत्र और तकनीक जल संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी की सुरक्षा में मदद करते हैं। पानी की उचित उपयोग और प्रबंधन के माध्यम से जल संसाधनों की बचत की जा सकती है और प्रदूषण के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

आर्थिक विकास : जलीय कृषि स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ाने का माध्यम भी बना सकती है। इसके माध्यम से रोजगार के अवसर सृजित होते हैं, संचयन में सुधार होता है और कृषि उत्पादों की वृद्धि होती है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में आय का स्रोत बन सकती है और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा दिया जा सकता है 

जलीय कृषि के अतिरिक्त फायदों के रूप में निम्नलिखित भी माना जाता है:


 वित्तीय संवर्धन: जलीय कृषि से उत्पादित मांस, मछली, और जलीय पौधों की बढ़ती मांग के कारण उच्च मूल्य वाले उत्पादों का निर्यात करने से आर्थिक संवर्धन होता है। यह किसानों को अधिक आय प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार करती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व : जलीय कृषि समुदायों के बीच सामाजिक संपर्क और समन्वय को बढ़ावा देती है। इसके माध्यम से संगठित मछली पालन और पानी की सभी विधियां सीखने का अवसर प्राप्त होता है, जो सामुदायिक विकास को समर्पित करता है। साथ ही, जलीय कृषि स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित रखती है और सांस्कृतिक आपसी सम्बन्धों को मजबूती देती है।

आपूर्ति श्रृंखला में स्थायित्व : जलीय कृषि उत्पादों की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करती है। इसमें उचित प्रबंधन रणनीति और तकनीकी सहायता का उपयोग करके बाहुलता होती है। यह आहार सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद करती है और खाद्य आपूर्ति में स्थायित्व लाती है।


इस तरह से, जलीय कृषि आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला में स्थायित्व का साधन होती है।


जलीय कृषि के और फायदे शामिल हो सकते हैं:

Aqua farming kya hai  (एक्वा फार्मिंग) 


 जलीय वातावरण का संरक्षण : जलीय कृषि पानी के प्रयोग को संवेदनशीलता से करती है और जल संसाधनों की संरक्षा को प्रोत्साहित करती है। इसके लिए जलमंडल में पानी की बचत के संबंध में उचित व्यवस्थापन उपयोग का ध्यान रखा जाता है।

 तटीय क्षेत्रों का संरक्षण : जलीय कृषि तटीय क्षेत्रों का संरक्षण करने में मदद करती है। जलीय पौधों और मछली की विकास तटीय संसाधनों को सुरक्षित करता है और किनारे की धरती को अप्रदूषित रखने में मदद करता है।

प्रौद्योगिकी विकास : जलीय कृषि प्रौद्योगिकी विकास को बढ़ावा देती है। नवीनतम तकनीकों, उपकरणों, और सामग्री का उपयोग करके उत्पादन प्रक्रिया में सुधार होता है और उत्पादों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। यह नए उद्यमों को बढ़ावा देती है और आधुनिक जलीय कृषि क्षेत्र को विकसित करती है।

प्राकृतिक जीवन की सुरक्षा : जलीय कृषि प्राकृतिक जीवन की सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके माध्यम से प्राकृतिक जीवन के संग्रह, संरक्षण, और पुनर्स्थापना की गतिविधियां संभव होती हैं। इससे प्राकृतिक संतुलन बना रहता है और जलमंडल का वातावरण स्थायी रूप से संरक्षित रहता है।


जलीय कृषि एक पर्यावरणीय, तकनीकी और आर्थिक तत्वों को सम्मिलित करने वाली प्रभावी कृषि प्रक्रिया है, जो संतुलित विकास और समृद्धि की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।


जलीय कृषि के अतिरिक्त फायदों के रूप में निम्नलिखित भी हैं:


प्रदूषण नियंत्रण : जलीय कृषि मछली पालन और जलीय पौधों के उत्पादन के माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण में मदद करती है। जलीय पौधों के उचित सेवन द्वारा जल की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है और मछली पालन से जलमंडल की सफाई होती है। इससे प्रदूषण का स्तर कम होता है और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।

प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग : जलीय कृषि उचित प्रबंधन के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग करने में मदद करती है। यह सुनिश्चित करती है कि पानी की संसाधनों का संतुलित उपयोग होता है इससे भूमि और पानी के संसाधनों की संरक्षा होती है और समुचित उपयोग सुनिश्चित होता है।

अल्पकालिक और उच्चाधिकार उत्पादन : जलीय कृषि अल्पकालिक और उच्चाधिकार उत्पादन के लिए एक अच्छा माध्यम है। मछली पालन और जलीय पौधों की खेती तेजी से होती है और संबंधित उत्पादों की आपूर्ति में वृद्धि होती है। इससे कृषि उत्पादों की वाणिज्यिक मांग को पूरा करने में मदद मिलती है और किसानों को अधिक आय प्राप्त करने का अवसर मिलता है।

Aqua farming kya hai  (एक्वा फार्मिंग) 


जलीय कृषि एक समृद्ध और आर्थिक तत्वों से भरपूर कृषि प्रथा है जो पर्यावरणीय, सामाजिक और प्राकृतिक संसाधनों के सुरक्षित उपयोग को समर्थन करती है।

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10/06/23

स्टॉक मार्केट क्या है what is stock market

 स्टॉक मार्केट क्या है what is stock market


 


स्टॉक मार्केट क्या है what is stock market 

स्टॉक मार्केट वित्तीय बाजारों का महत्वपूर्ण अंग है, जहां विभिन्न सूचनाएं, खबरें और दस्तावेज़ों की खोज-पट्ट की जाती है और जहां विभिन्न आम और निगरानीय वित्तीय उपकरणों के माध्यम से शेयरों और अन्य वित्तीय प्रोडक्ट्स की खरीद-बिक्री होती है। सामान्यतः, स्टॉक मार्केट को शेयर बाजार के रूप में जाना जाता है, जहां लोग शेयर खरीदने और बेचने के माध्यम से निवेश करते हैं।


शेयरों की मांग और विपणन के कारण, स्टॉक मार्केट में निवेश आपके पैसे की वृद्धि और मुनाफे की संभावना प्रदान करता है। यह वित्तीय प्रणाली एक साधन है जिसका उपयोग आपकी आय को कम समय में बढ़ाने के लिए किया जा सकता है, हालांकि इसमें ऊंचा रिस्क शामिल हो सकता है। इसलिए, स्टॉक मार्केट में निवेश करने से पहले आपको इसके बारे में व्यापक जानकारी हासिल करना चाहिए और सतर्क रहना चाहिए।


स्टॉक मार्केट की विशेषताएँ और निवेश के लाभ


स्टॉक मार्केट के कई महत्वपूर्ण तत्व होते हैं, जिन्हें निवेशकों को ध्यान में रखना चाहिए। पहले, स्टॉक मार्केट एक उच्च रास्ता प्रदान करता है जहां विभिन्न कंपनियों के शेयरों को खरीदने और बेचने का मौका मिलता है। इससे आपको विभिन्न कंपनियों में निवेश करने का अवसर मिलता है और इससे आपकी संपत्ति बढ़ सकती है।


दूसरे, स्टॉक मार्केट निवेशकों को विभिन्न सूचनाएं और अद्यतनों की प्रदान करता है, जिससे वे निवेश के लिए सटीक निर्णय ले सकते हैं। इसके लिए निवेशकों को स्टॉक मार्केट की गतिशीलता और वृद्धि पर नजर रखनी चाहिए, साथ ही आर्थिक स्थिरता, राजनीतिक प्रशासन और कंपनियों के कारोबार की स्थिति जैसे तत्वों का भी ध्यान देना चाहिए।


निवेशकों के लिए स्टॉक मार्केट के निवेश में विभिन्न रणनीतियों का उपयोग किया जाता है। छोटे व्यापारों के लिए, स्टॉक मार्केट आवश्यक निधि के स्रोत के रूप में उपयोगी हो सकता है, जबकि बड़ी कंपनियों के लिए यह नवीनतम परियोजनाओं और विस्तार के लिए निधि आपूर्ति प्रदान कर सकता है। व्यापारियों के लिए, स्टॉक मार्केट में निवेश उनकी संपत्ति को वृद्धि और अवसरों को मिलने का माध्यम हो सकता है।


आजकल, स्टॉक मार्केट भारत में बड़ी प्रगति कर रहा है और यहां के निवेशकों के लिए बड़ी संभावनाएं प्रदान कर रहा है। विभिन्न ब्रोकर फर्म और वित्तीय संस्थाएं निवेशकों को आसानी से शेयरों में निवेश करने की सुविधा प्रदान कर रही हैं। निवेशकों को आवश्यक सुविधाएं, उपयोगकर्ता मित्रशीप, IPO, आईपीओ और अन्य आदेश प्रक्रिया सम्बंधित सुविधाएं भी मिल रही हैं।


सारांश करते हुए, स्टॉक मार्केट वित्तीय बाजारों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और निवेशकों के लिए वृद्धि, मुनाफा और अवसरों का स्रोत है। हालांकि, स्टॉक मार्केट में निवेश करने में ऊँचा रिस्क हो सकता है, इस लिए निवेशकों को विवेकपूर्वक निवेश करने की सलाह दी जाती है और पूरी जानकारी के साथ सोच-समझकर निवेश निर्णय लेने की सलाह दी जाती है। स्टॉक मार्केट में सफलता प्राप्त करने के लिए, निवेशकों को नियमित रूप से बाजार की स्थिति और अद्यतनों के साथ अवश्य रहना चाहिए।


शेयर बाजार में निवेश करने के लिए कुछ सरल सुझाव हैं:


1. शेयर बाजार की जानकारी प्राप्त करें: शेयर बाजार के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त करें। इसके लिए शेयरों, बाजार के इतिहास, कंपनी के प्रदर्शन आदि के बारे में पढ़ें। अखबारों, वेबसाइटों और विशेषज्ञों के साथ बातचीत करके आप इस जानकारी को प्राप्त कर सकते हैं।


2. अपनी निवेश योजना तैयार करें: अपनी निवेश योजना तैयार करें। इसमें आपको निवेश करने की राशि, समयखंड और लक्ष्य समेत योजना बनानी होगी। इससे आप अपने निवेश को सुचारू रूप से कर सकेंगे और विश्वास दिला सकेंगे।


3. सोच-समझकर निवेश करें: शेयर बाजार में निवेश करते समय सोच-समझकर करें। कंपनी का विश्लेषण करें, उसके निपटान, मुनाफा, और वित्तीय स्थिति की जांच करें। अपने निवेश के साथ जोखिम और मुनाफा का संतुलन बनाएं।


4. विभाजित निवेश करें: अपनी निवेश राशि को विभाजित करें। यानी अपना पैसा अलग-अलग निवेशों में बाँटें, जैसे कि शेयर, म्यूचुअल फंड, निवेशी निधि इत्यादि। ऐसा करने से आपकी पोर्टफोलियो संतुलित रहेगी।


5. निवेश की निगरानी और संशोधन: निवेश करने के बाद अपने निवेश की निगरानी करें। बाजार की स्थिति, कंपनी का प्रदर्शन, और वित्तीय घटकों को ध्यान से देखें और जरूरत पड़ने पर अपने निवेश में संशोधन करें। इससे आप बाजार के हालात के हिसाब से सही कार्रवाई कर सकेंगे।


शेयर बाजार में निवेश करते समय इन सुझावों का पालन करने से आप एक सतर्क और सफल निवेशक बन सकते हैं। समय के साथ अपनी निवेश रणनीति में सुधार करते रहें और अपने निवेश का ध्यानपूर्वक प्रबंधन करें।

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06/06/23

Cash withdrawal without ATM


Cash withdrawal without ATM 

पैसे निकाले बिना एटीएम कार्ड के


 बैंक ऑफ बड़ौदा ने सोमवार को एक नई सेवा आरंभ करने की घोषणा की जिसे  Interoperable Cardless Cash Withdrawal नकद निकासी (ICCW) कहा जाता है जिससे ग्राहकों को बैंक के ATM से UPI (एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस) का प्रयोग करके नकद वापस लेने की अनुमति मिलती है। यह बैंक ऑफ बड़ौदा को इस सेवा को लागू करने वाला पहला सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक बना देता है।इसके साथ ग्राहक प्रत्येक खाते में 5,000 रुपये प्रति लेनदेन की निकासी सीमा के साथ दो लेनदेन का लाभ उठा सकते हैं।

Cash withdrawal without ATM 

ग्राहक ATM स्क्रीन पर 'UPI नकद निकासी' विकल्प का चयन कर सकते हैं, और फिर वापसी राशि दर्ज कर सकते हैं।एक QR कोड स्क्रीन पर दिखाई देगा।

ऋणदाता ने आगे कहा कि ग्राहक ICCW के लिए सक्षम UPI APP का उपयोग करके QR कोड स्कैन कर सकता है और फिर ATM से नकदी निकालने के लिए मोबाइल फोन पर उसके/उसके UPI पिन के साथ लेन-देन को प्राधिकृत कर सकता है.

Cash withdrawal without ATM 

ऋणदाता ने कहा कि "सार्वजनिक क्षेत्र का पहला बैंक, बड़ौदा ग्राहकों के साथ-साथ अन्य सहभागी जारीकर्ता बैंकों के ग्राहकों, जो कि उनके मोबाइल फोन पर BHIM UPI, BANK OF BARODA UPI या ICCW के लिए सक्षम किसी अन्य UPI आवेदन का उपयोग करते हैं, के बैंक से अपने डेबिट कार्ड का उपयोग किए बिना नकदी निकाल सकता है।"

यदि एकाधिक बैंक खाते एक UPI ID से जुड़े हैं, तो ICCV कार्यक्षमता ग्राहकों को डेबिट किए जाने वाले खाते का चयन करने का विकल्प देती है।

बैंक ऑफ बड़ौदा भारत भर में 11,000 से अधिक एटीएम चलाता है. सभी को यह नई सुविधा मिल जाएगी. दूसरे बैंक भी इसे शुरू करने की योजना बना रहे हैं.


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ममी का रहस्य Mystery of Mummy in Egypt Mummy ka rahasya Hindi

 

ममी का रहस्य (Mystery of Mummy in Hindi)

Mummy ka rahasya Hindi





ममी का अर्थ होता है एक मृत शरीर जिसे सुरक्षित कर दफनाया जाता है. ममी एक मृत व्यक्ति का शरीर है जो की कपडे में लपेटा हुआ और कब्र में रखा हुआ होता है.


दूसरी परिभाषा में ममी एक सुरक्षित शव को कहते है जिसके अंग एवं त्वचा को जानबूझकर या बिना बुझे-समझे ही किसी प्रक्रिया से सुरक्षित कर दिया जाता है.


सुरक्षित  करने के लिए दुर्लभ अकानुपात रसायनों का प्रयोग, अत्यंत शीतल वातावरण, बहुत कम आर्द्रता, बहुत कम हवा आदि की तकनीकें अपनायी जाती है.


ममी क्या है (What is Mummy in Hindi)

क्या आप जानते है के ममी किसे कहते हैं? किसी मृत शरीर पर लेप आदि लगाकर मृत शरीर को सालों तक सुरक्षित रखने के तरीकों को ममी कहा जाता है और लोगों का ऐसा मानना है की मिस्र के पिरामिड के अन्दर ममी को रखा गया है.


लेकिन यहाँ सवाल ये उठता है की आखिर मिस्र में mummies बनाई क्यों जाती है? असल में मिस्रवासी मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास करते थे. उनका मानना था कि उन्हें अपने शरीर को संरक्षित करना होगा ताकि वे उन्हें जीवन में उपयोग कर सकें. उनमें से कुछ और लोगो का मानना था कि मम्मी मारे हुए लोगो से बहुत प्यार करते थे और उन्होंने वे अपने पास हमेसा रखना चाहते थे इस ऐसा करते थे।


ममी का रहस्य Mystery of Mummy in Egypt Mummy ka rahasya Hindi

मिस्रवासियों का मानना था कि जब वे मर जाएंगे, तो वे दूसरी दुनिया की यात्रा करेंगे जहाँ वे एक नया जीवन जीएंगे. जब वे जीवित थे, तो उन्हें उन सभी चीजों की आवश्यकता होगी जो उनके परिवार ने इस्तेमाल की थीं, इसलिए उनके परिवार के लोग उसके दैनिक उपयोगी  वस्तु एवम् अन्य सामानों  को जो काम में आए उन चीजों को उनके कब्र में रख देते थे।


मिस्रवासियों ने अपने शरीर को ठीक से संरक्षित करने के लिए बड़ी मात्रा में धन का भुगतान किया. मिस्र के जो गरीब थे उन्हें रेत में दफनाया गया जबकि अमीर लोगों को एक कब्र में दफनाया गया.


ममी की उत्पत्ति प्राचीनकाल में मिस्र के लोगो द्वारा हुई. मिस्र के लोग और बाकि देशो में लोग अपने करीबी रिश्तेदार और प्रिय जानवरों की मृत्यु के बाद उनकी ममी बनाकर सालो तक उन्हें संभाल कर रखते थे. मिस्र में 1 million से ज्यादा ममी है इसके अलावा पुरे विश्व में मानव और जानवरों की ममी आज भी पायी जाती है.


ममी के बारे में जानकारी- 

क्यों तैयार की जाती थी ममी?

पिरामिडों में लाशों को रखने से पहले उन्हें ममी में तब्दील किया जाता था और फिर उन्हें पिरामिड में दफना दिया जाता था. प्राचीन मिस्र और विश्व के कई अन्य देश के लोगों का पुनर्जन्म में विश्वास था और वो ये मानते थे की मृत व्यक्ति के शरीर को संभाल कर रखा जाना चाहिए ताकि अगले जन्म में वो उस शरीर को पा सके.


इसी सोच के वजह से प्राचीन काल से लोगों ने ममी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी और प्राचीन काल से शुरू हुई ये प्रक्रिया आज तक जारी है. शरीर के कई महत्वपूर्ण हिस्सों को बाहर निकाल दिया जाता था, यहाँ तक की दिमाग को भी. हालाँकि दिल को नहीं निकाला जाता था.

ममी का रहस्य Mystery of Mummy in Egypt Mummy ka rahasya Hindi


ममी बनाने की विधि

आखिर कैसे बनाया जाता है ममी? पहले के समय एक ममी बनाने में 70 दिन लग जाते थे और ममी को बनाने के लिए धर्म गुरु और पुरोहित के साथ साथ विशेसज्ञ भी होते थे.


ममी बनाने की विधि और प्रक्रिया को ममिकरण (mummification) कहा जाता है. पहले मृत शरीर को धोया जाता था और शुद्ध किया जाता था. फिर उसके अंग निकाल दिए जाते थे. लेकिन ह्रदय यानि दिल को नहीं निकाला जाता था.


मिस्र वासियों का मानना था की ह्रदय बुद्धि और भावना का केंद्र होता है. फिर मृत शरीर की पूरी नमी को ख़त्म किया जाता है और ऐसा करने में कई दिन का समय लगता था. जब शरीर की नमी ख़त्म हो जाती थी तो पुरे मृत शरीर पर परत दर परत कॉटन या लिनन की पट्टीयो से लपेटा जाता था.


जब पुरे शारीर पर पट्टी लपेट ली जाती थी तो शरीर के आकार से मिलते जुलते लकड़ी के ताबूत तैयार किये जाते थे और फिर इन ताबूत को रंगा जाता था.


और यह सब जब पूरा हो जाता था तब धर्मगुरु के मतानुसार इस पर धार्मिक वाकया आदि लिख दिया जाता था और एक धार्मिक समारोह करके ताबूत को शरीर सहित चबुतरे पर सम्मान के साथ रख दिया जाता था.


ममी के रूप में शरीर को सुरक्षित रखने की यह पूरी प्रक्रिया काफी महँगी थी इसलिए केवल अमीर लोग ही इस प्रक्रिया को अपनाते थे, गरीब लोग रेत में दफना दिए जाते थे.

ममी का रहस्य Mystery of Mummy in Egypt Mummy ka rahasya Hindi

मिस्र के लोग ममी बनाने की इस विधि में इतने कुशल थे की चार हजार साल पहले बनायीं गयी ममी के त्वचा, बाल, पहचानने योग्य निशान जैसी विशेषताये अभी भी मौजूद है.


मिस्र का रहस्य

mishra ka rahasya Hindi

Egypt (मिस्र)

मिस्र बहुत ही प्राचीन देश है. यहाँ के पिरामिडों की प्रसिद्धि और प्राचीनता के बारे में सभी जानते हैं. प्राचीन मिस्र नील नदी के किनारे बसा है. यह उत्तर में भूमध्य सागर, उत्तर-पूर्व में गिज़ा और इजराइल, पूर्व में लाल सागर, पश्चिम में लीबिया एवं दक्षिण में सूडान से घिरा हुआ है.


मिस्र प्राचीन सभ्यताओं वाला देश है. खासकर गिज़ा के पिरामिडों के आसपास बसे शहर को सबसे प्राचीन माना जाता है. यहाँ पर आपको मिस्र की प्राचीन सभ्यता के बारे में ऐसी जानकारी बताने जा रही हूँ जिनके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं-


1. मिस्र सभ्यता के लोग बालों से नफरत करते थे, उनके मुताबिक शरीर पर बाल होना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.


2. मिस्र में मेकअप करना आवश्यक था. ये लोग सुरमा का प्रयोग करते थे, इनका मानना था की सुरमा उन्हें सूर्य की किरणों, मखियों तथा हानिकारक संक्रमणों से बचाए रखता था.


3. मिस्र के लोगों के लिए दाँतों को साफ़ रखना इतना महत्वपूर्ण था को वो मामियों को टूथ पिक के साथ ही दफनाते थे.


4. ये बहुत ही अचंभित करने वाली बात है की मिस्र में राजाओं के मरने के बाद उनके नौकरों को भी उनके साथ जिंदा दफना दिया जाता था.


5. पूरी दुनिया के विपरीत मिस्र की महिलाएं आज़ाद थीं- वो जमीन खरीद सकती थी, जज बन सकती थी और अपनी वसीयत भी लिख सकती थी. मर्दों की तरह वो बाहर का काम भी करती थी जिसमे उन्हें वेतन दिया जाता था.


6. मिस्र के निवासी गणित में काफी तेज़ होते थे. उनके द्वारा बनायीं गयी संरचनाओं से यह साबित होता है की गणित और वास्तु कला में वो बहुत तेज़ और निपुण थे.


7. प्राचीन मिस्र में बिल्लियों का एक अलग स्थान था. जब भी उनकी पालतू बिल्ली मर जाती थी, तो वे बिल्लियों को ममी बनाते थे और उन्हें चूहे और एक कटोरी दूध के साथ दफनाया जाता था.


8. मिस्र के डॉक्टर एक ही अंग का अध्ययन करते थे. प्राचीन मिस्र में एक चिकित्सक एक ही बीमारी का विशेषज्ञ था और उससे संबंधित इलाज ही करता था. उनके पास हर बीमारी के लिए एक अलग चिकित्सक होता था.


9. मिस्र पर जब फिरौन का शासनकाल था तब वहां की मुद्रा दारू हुआ करती थी.




मिस्र के पिरामिड का रहस्य

mishra ke pyramid ka rahasya in hindi

Pyramid

मिस्र के पिरामिड विश्व के सबसे प्रसिद्ध मानव निर्मित संरचनाओ में से एक है. कहा जाता है की पिरामिड को बनाया गया था राजा-महाराजाओं के शव को ममी के रूप में सुरक्षित रखने के लिए.


प्राचीन मिस्रवासियों की धारणा थी की उनका राजा किसी देवता से कम नहीं और वो उसे उसी रूप में पूजना चाहते थे. मृत्यु के बाद राजा दूसरी दुनिया में अन्य देवताओं से जा मिलता है, इस धारणा के चलते राजा का मकबरा बनाया जाता था और इन्ही मकबरों का नाम पिरामिड रखा गया था. यह मकबरा त्रिभुजाकार होता था.


इनमे केवल राजा ही नहीं बल्कि रानियों के शव भी दफनाये जाते थे और इन शवों के साथ साथ अनेक कीमती वस्तुएं भी दफ़न की जाती थी. लेकिन आज तक किसी भी पिरामिड में कोई भी ममी नहीं मिला.


वैज्ञानिकों के अनुसार इन पिरामिड के निचे बहुत से ऐसे गुप्त कमरे और रास्ते हो सकते हैं जिनके बारे में अभी भी हमारे पास कोई भी जानकारी नहीं है. वैसे तो मिस्र में 138 पिरामिड है, इनमे से सबसे प्रसिद्ध गिज़ा का पिरामिड है.


इसे ग्रेट गिज़ा पिरामिड भी कहा जाता है जो दुनिया के सात अजूबों में से एक है. मिस्र में स्थित गिज़ा पिरामिडों का निर्माण 2560 ईसा पूर्व में किया गया था जो सभी पिरामिड में सबसे ऊँचा पिरामिड है और उसकी ऊचाई 481 फ़ीट है.


यह पिरामिड मिस्र के चौथे वंस के राजा फ़राओ खुफु ने बनाया था जो दुनिया की सबसे लम्बी नील नदी के किनारे से थोड़ी दुरी पर है. इन पिरामिड का निर्माण कैसे किया गया है ये अभी तक एक रहस्य बना हुआ है और पुरातत्ववेत्ता कई सालो से इस रहस्य का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं.


एक अनुमान के अनुसार गिज़ा के पिरामिड को बनाने में 23 लाख पत्थर के टुकड़ों का इस्तेमाल हुआ है जिनका वजन 2 से 30 टन और कुछ का वजन 45000 किलो तक था. इस पिरामिड को बनाने में करीब 23 साल लगे जिसे 30 लाख मजदूरों ने बनाया था.


गिज़ा के पिरामिड को धीरे धीरे बनाया गया, एक समय पर केवल एक ही ब्लाक बनाया गया, यह भी माना जाता है की प्राचीन मिस्र वासी पत्थरों के विशाल ब्लॉक्स को रेगिस्तान के पार ले जाने में सक्षम थे. एक नयी रिसर्च के मुताबिक गीली रेत के द्वारा भी भरी वस्तुओं को खींचना संभव हुआ.


Dutch शोधकर्ताओं का मानना है की मिस्र वासियों ने एक स्लेज (sledge) पर भारी वस्तुएं रखी और सैंकड़ों मजदूरों द्वारा इन्हें खिंचा गया और इसके सामने रेत पर पानी डाला गया होगा. एम्स्टर्डम विश्वविद्यालय में हुए प्रयोग से ये बात सामने आई है की रेत में गीलेपन या नमी की सही मात्रा खींचने पर लगने वाले बल को आधा करती है.


गिज़ा पिरामिड के पास दो और पिरामिड है जो उसकी रानी और उसकी माँ के लिए है. मिस्र के पिरामिड की उम्र 4500 साल हो चुकी है लेकिन ये अभी भी सही सलामत है.


इनके बचे रहने का एक कारण इनमे प्रयोग किया गया मोर्टार पत्थर भी है जो आम पत्थर से मजबूत होता है. आपको ये जानकार हैरानी होगी की पिरामिड केवल मिस्र में ही नहीं बल्कि चीन, इंडोनेशिया और साउथ अमेरिका में भी मौजूद हैं.


पिरामिड का जादुई प्रभाव

मिस्र के पिरामिड अपने भीमकाय आकार, अनूठी संरचना और मजबूती के लिए तो जगत में प्रसिद्ध है ही, लेकिन उससे भी कई अधिक प्रसिद्ध है अपने जादुई प्रभाव के लिए.


इसे पिरामिड का जादुई प्रभाव ही कहेंगे की दिन और रात के कठोर उतार-चढ़ाव वाले तापमान के बावजूद, पिरामिड के अन्दर का तापमान हमेशा 20 डिग्री celsius रहता है.



वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा ये प्रमाणित हो गया है की पिरामिड के अन्दर विलक्षण किस्म की उर्जा तरंगें लगातार काम करती रहती है जो चेतन (सजीव) और जड़ (निर्जीव) दोनों ही प्रकार की वस्तुओं पर प्रभाव डालती हैं.


वैज्ञानिक पिरामिड के इस गुण को पिरामिड पॉवर कहते हैं और इसके अन्दर बैठने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है जैसे सर दर्द, दांत दर्द, मानसिक तनाव, अनिद्रा जैसे बीमारी ठीक हो जाते हैं.


पिरामिड के अन्दर रखे जल को पिने वाले पाचन संबंधी रोग से कुछ हद तक मुक्ति पाते भी देखा गया है.


मिस्र के पिरामिड और वहां की मिस्र के ममी का रहस्य (Mystery of Mummy in Hindi) इतने लोकप्रिय हैं की हर साल लाखो लोग मिस्र के पिरामिडों की यात्रा करने के लिए जाते हैं, मिस्र की समृद्धि और गौरवशाली कारीगरी और उसके विशाल पिरामिडों को देखने के लिए.


 

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05/06/23

Sunami kya hai

 



सुनामी (Tsunami)


किसी जल-निकाय (Waterhody), जैसे-महासागर का तीव्र गति से विस्थापित तरंगों का एक क्रम उत्पन्न करता है, जिसे सुनामी (Timami) कहते हैं। भूकम्प, जल-स्तर के ऊपर या नीचे बड़े पैमाने पर सचलन, ज्वालामुखी विस्फोट तथा अन्तर्जलीय विस्फोट, भूखतनं अन्तर्जलीय भूकम्प, बड़े उल्का पिंडों अथवा ग्रहिकाओं का प्रभाव तथा समुद्र में परमाणु परीक्षण सभी सुनामी उत्पन्न करने को क्षमता रखते हैं।

 छोटे पैमाने पर सुनामी का प्रभाव नगण्य होता है परन्तु बड़े पैमाने पर विध्वंसक होता है। सुनामी 'शब्द' दो जापानी शब्दों-'सु' (Tsu) अर्थात् बन्दरगाह तथा 'नामी' (Nami) अर्थात तरंग को जोड़कर बना है। जापान के इतिहास में सुनामी एक आम घटना है. इस देश में लगभग 195 सुनामी की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।


Sunami kya hai 

अपतट पर सुनामी का लघु आयाम (तरंगों की ऊँचाई) (Amplitude) तथा एक शक्तिशाली तरंग दैर्ध्य (Wave-length) (अक्सर सैकड़ों किलोमीटर तक) होता है, जिसके कारण वे सागर पर नहीं दिखते तथा गुजरते हुए एक हल्के टीले (hump) को नजर आते हैं। सुनामी को पुराने जमाने में ज्वारीय तरंग कहा जाता था क्योंकि तट के नजदीक आते हो यह ज्वार भाटा की हो प्रचंड रूप धारण कर लेता है।

 यह तरंग- भूग (Cresting waves) की तरह नहीं होता है, जो महासागरों पर पवन के प्रभाव से निर्मित होते हैं (जिससे लोग अच्छी तरह अवगत हैं)। चूंकि सुनामी का सम्बन्ध ज्वार भाटा से नहीं है इसलिए सुनामी को न्यारीय तरंग कहा जाना उपयुक्त नहीं है तथा समुद्र वैज्ञानिकों ने इस शब्द के उपयोग को रोकने का प्रयास किया है। सुनामी के कारण (Causes of Tsunami)


Sunami kya hai 

सुनामी तब उत्पन्न होती है, जब प्लेटों की सीमाओं के आकस्मिक विरूपण के कारण ऊपरी जल का कयाधर (Vertical) विस्थापन होता है। पृथ्वी के भूपटल के ऐसे बड़े ऊर्ध्वाधर संचलन प्लेटों की सीमाओं के नजदीक उत्पन्न होते हैं। सबडक्शन (Subduction) भूकम्प सुनामी उत्पन्न करने में आंशिक रूप से प्रभावी होते हैं। 1940 के दशक में हिलो, (Hilo) हवाई (Hawaii) में सुनामी का कारण अलास्का के ऐलुशियन द्वीप (Aluetian Island) में आया भूकम्प था।

 इस भूकम्प की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.8 थी। सुनामी एक बड़े भूकम्प से उत्पन्न होता है, जिसके कारण जल के अन्दर की प्लेट ऊपर की ओर उठ जाती हैं तथा एक बड़ी तरंग उत्पन्न होती है।


1950 के दशक में विशेषज्ञ यह मानने लगे थे कि कुछ बड़ी सुनामी के संभावित कारण- भूस्खलन, ज्वालामुखी विस्फोट,


परीक्षण इत्यादि हो सकते हैं। ये घटनाएँ तीव्र गति से बड़ी मात्रा में जल को विस्थापित करती है। चूँकि मलबों के जल में गिरने तथा विस्तरण से ऊर्जा काजल की ओर स्थानांतरण होता है। इन प्रक्रियाओं से उत्पन्न सुनामी महासागरों की सुनामी की अपेक्षा अधिक जल्दी मिट जाती है तथा कभी-कभार ही तट को प्रभावित करती हैं। इस प्रकार की सुनामी का प्रभाव क्षेत्र अत्यन्त छोटा होता है ये घटनाएँ अधिक बई स्थानीय तरंगों (Solitons) को जन्म दे सकती हैं, जैसे लिया खाड़ी (Lituya Bay) के शीर्ष पर हुए भूस्खलन से. 50-150 मीटर के आकार को एक जल तरंग की उत्पत्ती हुई, जो स्थानीय पर्वत के निकट लगभग 524 मीटर की ऊंचाई तक जा पहुँची। एक अत्यन्त बड़ा भूस्खलन एक दीर्घ आकार के सुनामी (Megatsunami) को जन्म दे सकता है, जिसका प्रभाव महासागर में भी देखा जा सकता है। 


जापान का एक बड़ा भूकम्प ।। मार्च, 2011 को आया जिसका केन्द्र होन्शू द्वीप (Hanshu Island) के निकट उतर पूर्व में था। इसकी तीव्रता 9.0 से अधिक थी। इस भूकम्प से उत्पन्न होने वाली लहरों को लपेट में डायची नगर (Daicha chy) पूर्ण रूप से बर्बाद हो गया। 15,854 लोगों की जाने गई, 3274 व्यक्ति लापता हुए तथा 320,000 शरण गृहों में रहने को विदेश हुए। फुकुशिमा के 54 न्यूक्लियर रिएक्टर में से 52 नष्ट हो गए, जिनमें से केवल दो कार्य कर रहे हैं।



सुनामी के संकेत (Signs of an Approching Tunami)


सुनामी के आगमन का असर कोई नहीं होता है। कार सुनामी का कारण होता है इसलिए किसी जल निकाय (waterbonly) के नजदीक भूकम्प की घटना सुनामी के आगमन का संकेत हो सकती है। यदि तट पर पहुँचने वाला सुनामी का पहला भाग तरंग के मृग (crest) की बजाय द्रोण (trough) हो तो तट का विस्थापन पीछे की ओर होगा तथा क्षेत्र हो जाएंगे, जो सामान्यतः जलमग्न रहते हैं। यह सुनामी के मृग के आगमन का एक संकेत हो सकता है परन्तु यह संकेत क्षणिक होता है क्योंकि इस संकेत तथा आगामी खतरे के बीच कुछ सेकण्ड से लेकर एक


मिनट तक का अन्तर होता है। वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में आए सुनामी के समय समुद्र का पीछे की ओर विस्थापन न ही अफ्रीकी तट तथा न ही पश्चिमी तट में देखा गया, ज्योंही पूर्व दिशा की ओर से सुनामी इन वटों की तरफ बढ़ा

Sunami kya hai 

सुनामी अधिकतर प्रशांत महासागर में घटित होते हैं लेकिन यह एक विश्वव्यापी घटना है। सुनामी की घटना उन सभी जगहों पर संभव है. जहाँ बड़े जल निकाय (waterbodies) पाए जाते है, जिसमें अंतःस्थलीय झोल शामिल हैं, यहाँ सुनामी का कारण भूस्खलन होता है। कम तीव्रता वाले भूकम्पों तथा अन्य घटनाओं के कारण अक्सर छोटी सुनामी उत्पन्न होती है, जो विध्वंसक नहीं होती तथा बगैर विशेष उपकरण द्वारा इनका पता नहीं चल सकता है।


इतिहास में सुनामी (Tsunami in History)


इतिहास में सुनामी एक दुर्लभ घटना नहीं है। पिछली सदी में लगभग 25 सुनामी की घटनाएँ हुई है। इनमें से कई एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दर्ज की गई, खासकर जापान में वर्ष 2004 में आए सुनामी के कारण लाखों लोगों की जान गई। मिस्र के नगर सिकंदरिया (Alexandria) के विनाश का कारण अब सुनामी हो माना जाता है।


चेतावनी तथा बचाव (Warning and Prevention


सुनामी की रोका नहीं जा सकता और न ही इसका सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। परन्तु सुनामी के आगमन के कुछ संकेत है तथा कई ऐसे तरीके विकसित किए जा रहे हैं, जिससे सुनामी से हुई क्षति को कम किया जा सकेगा। ऐसे मामले जहाँ तट पर पहुँचने वाले सुनामी का पहला भाग यदि तरंग का द्रोण हो तो तट का विस्थापन पीछे की ओर तरंग के आवागमन से पहले तरंग के आधे अवधि तक होगा। यदि तटीय समुद्र तल का ढाल उचला हो तो यह विस्थापन सैकड़ों मीटर से अधिक हो सकता है। आगामी खतरे (सुनामी के श्रृंग के आगमन पर ) से अनभिज्ञ लोग तट पर अपनी जिज्ञासा वश रहते हैं या फिर अनावृत समुद्र तल से मछली एकत्र करने के लिए।



ऐसे क्षेत्र जहाँ सुनामी का खतरा अधिक होता है, वहाँ सुनामी के पूर्वानुमान के लिए सुनामी चेतावनी तंत्र की मदद ली जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट (इस क्षेत्र में अक्सर प्रशांत महासागर के सुनामी का खतरा बना रहता है) के निकट रह रहे समुदायों के बीच सुनामी के लिए कुछ चेतावनी संकेत प्रचलन में हैं, जो लोगों को सुनामी से उत्पन्न परिस्थिति से निपटने में मदद करते हैं। ये संकेत लोगों को यह सुझाव देते हैं कि सुनामी के आने पर आश्रय के लिए किस ओर जाना चाहिए। कम्प्यूटर मॉडल द्वारा सुनामी के आगमन का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सुनामी के प्रभाव का आकलन इसके कारण से सम्बन्धित सूचनाओं से तथा समुद्र तल के आकार (bathmetry) व तटीय भूमि के आकार (स्थलाकृति) के आधार पर किया जा सकता है। 

Sunami kya hai 

सुनामी का एक पूर्व संकेत पशुओं के व्यवहार द्वारा भी मिलता है। कई पशु आने वाले खतरे को समझ लेते हैं तथा ऊँचे स्थानों की ओर चले जाते हैं। लिम्बन भूकम्प यूरोप में जानवरों के असामान्य व्यवहार का दर्ज किया गया पहला मामला है। वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में सुनामी आने से पहले पशुओं का असामान्य व्यवहार श्रीलंका में भी देखा गया था। 

यद्यपि सुनामी को रोका नहीं जा सकता है परन्तु कुछ सुनामी प्रवण देशों ने ऐसे कदम उठाए है, जिससे तट के निकट हुई क्षति को कम किया जा सकेगा। जापान ने एक व्यापक कार्यक्रम का कार्यान्वयन किया है, जिसके तहत अधिक आबादी वाले तटीय क्षेत्रों में सुनामी से बचाव के लिए 4.5 मीटर (13.5 फीट) ऊँची दीवारों का निर्माण शामिल है।

Sunami kya hai 

अन्य स्थानों में बाढ़ द्वार तथा जलमार्गों का निर्माण किया गया है ताकि सुनामी से आने वाले जल की दिशा में परिवर्तन किया जा सके। सुनामी से बचाव के लिए निर्मित दीवारों को प्रभाविता पर प्रश्न चिन्ह खड़े किए गए है। चूँकि सुनामी की ऊँचाई इन निर्मित अवरोधों से कहीं अधिक होती है। प्राकृतिक उपायों (जैसे-तट के निकट बड़ी मात्रा में वृक्ष लगाना) के द्वारा सुनामी से हुई क्षति को कम किया जा सकता है। वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में आई सुनामी के मार्ग में कई ऐसे स्थान थे, जहाँ क्षति की मात्रा नगण्य थी क्योंकि सुनामी की ऊर्जा को यहाँ मौजूद नारियल, ताड़ तथा मैन्ग्रोव (Mangrove) के वृक्षों द्वारा अशक्त कर दिया गया। भारत के तमिलनाडु राज्य का नालुवेदापथी गाँव 2004 की सुनामी से प्रभावित नहीं हुआ। वृक्षारोपण के कारण यहाँ हुई क्षति नगण्य थी। यह गाँव वर्ष 2002 में समुद्र तट के निकट 80,244 वृक्ष लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करा चुका था।

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poultry farming के बारे में विस्तृत जानकारी



मुर्गी पालन  Poultry Farming
मुर्गी पालन (रजत क्रांति) यह पशुपालन का एक उपभाग है, जिसमें माँस तथा अंडों के लिए कुक्कुट, टर्की, बतख तथा गीजों (Geese) का पालन-पोषण किया जाता है। इसमें कम पूँजी की आवश्यकता होती है तथा यह क्षेत्र ग्रामीण आबादी को कम समय में एक अतिरिक्त आय का स्रोत तथा रोजगार का अवसर प्रदान करता है। अधिकतर मुर्गी पालन फैक्टरी फार्म तकनीकों के अनुसार किया जाता है। 'दि वर्ल्डवॉच इंस्टीट्यूट' के अनुसार, विश्व में 75 प्रतिशत कुक्कुट माँस तथा 70 प्रतिशत अंडे इसी तरह उत्पन्न किए जाते हैं

poultry farming 
poultry farming 

मुर्गी पालन की दोनों विधियों (स्वतंत्र रूप से 'कुक्कुट पालन' तथा 'फैक्टरी फार्मिंग') के बीच परस्पर विवाद है। फैक्टरी फार्मिंग के विरोधी यह मानते हैं कि यह विधि पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिए खतरा है तथा यह कुक्कुट पालन का निर्मम व क्रूर तरीका है। फैक्टरी फार्मिंग के समर्थक यह मानते हैं कि इस विधि से उत्पादकता बढ़ती है, यह बढ़ती विश्व जनसंख्या के लिए अनिवार्य है, न केवल इसमें मुर्गे मुर्गियों की अच्छी देख-रेख होती है बल्कि यह विधि पर्यावरण को भी सुरक्षित रखती है।

भारत में मुर्गी पालन  Poultry Farming in India

भारत में मुर्गी पालन काफी पुराना है। वर्तमान में इस क्षेत्र में 3 मिलियन से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। इस क्षेत्र द्वारा वर्ष 2014-15 में लगभग 2.4 मिलियन टन कुक्कुट माँस उत्पादि किया गया। 1970 से 2011 के बीच अंडों की वार्षिक प्रति व्यक्ति उपलब्धता चार गुना अधिक हो गई है ( 10 से 45) वही कुक्कुट माँस को उपलब्धता में और अधिक वृद्धि हुई, यह 145 ग्राम से 1.7 किलो हो गयी। वर्तमान में भारत 78.12 बिलियन अंडों का प्रतिवर्ष उत्पादन करता है।

poultry farming 

यह क्षेत्र न केवल रोजगार के अवसर तथा वैकल्पिक आय को बढ़ाता है बल्कि गाँवों के गरीब लोगों को पोषक की गारंटी भी प्रदान करता है। भूमिहीन मजदूर अपने आय का 50 प्रतिशत से भी अधिक पशुधन से प्राप्त करते हैं, खासकर मुर्गी पालन से भारत सरकार ने 2014-15 तक इस क्षेत्र में 4.5 प्रतिशत दर विकास के साथ 78 अरब से अधिक अंडों के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है।

कुक्कुट तथा मुर्गी उत्पादन के विश्व व्यापार में भारत की भागीदारी बहुत कम है परन्तु पिछले दशक में ऐसे निर्यातों का मूल्य 11 करोड़ (1990.91) से बढ़कर 350 करोड़ रुपये (2010-11 ) हो गया। इस क्षेत्र के उत्पाद, जैसे- जीवित मुर्गे-मुर्गियों, अंडे, अंडे का पाउडर, जमे हुए अंडे तथा मुर्गे मुर्गियों के माँस आदि का निर्यात बंगलादेश, श्रीलंका, दक्षिण-पश्चिम एशिया,जापान, डेनमार्क, पौलेंड, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अगोला जैसे देश को किया जाता है। इस क्षेत्र के कुल उत्पादन का मूल्य लगभग 20,000 करोड़ रुपए हैं।

poultry farming 

भारत में 260 मिलियन से अधिक मुर्गियों है तथा वर्ष 2010-11 में भारत में अड़ों का उत्पादन 30 मिलियन अंडे था। भारत में कुक्कुट की सबसे अधिक संख्या आंध्र प्रदेश में है, जिसके बाद बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, असम, कर्नाटक- केरल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा का स्थान आता है। अधिकतर बड़े पोल्ट्री फॉर्म महत्वपूर्ण नगरीय केन्द्रों के निकट विकसित किए जा रहे हैं. जैसे- मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलौर, पुणे, नागपुर, शिमला, भुवनेश्वर, अजमेर, चण्डीगढ़ तथा भोपाल।

मुर्गे मुर्गियों का पर्याप्त पोषण तथा बर्ड फ्लू (एवियन इन्फ्लुएन्जा) पर नियंत्रण इस क्षेत्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। एवियन फ्लू की पहली घटना महाराष्ट्र में फरवरी 2006 में सामने आयी। सरकार द्वारा देश स्तर पर इसको रोकथाम के लिए कार्य किया जा रहा है।

poultry farming 

केन्द्रीय कुक्कुट विकास संगठन संसाधनहीन किसानों विशेषकर महिलाओं में पोषण संबंधी भुखमरी दूर करने और गरीबी उन्मूलन के एक साधन के रूप में कुक्कुट को अपनाने की सरकार की नीतियों के अनुपालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। केन्द्रीय कुक्कुट विकास संगठनों के लक्ष्य में विशेष संशोधन करते हुए इस विभाग की सभी कुक्कट इकाईयों का पुनर्गठन किया गया है. ताकि ये उन्नत देशज पक्षियों पर ध्यान केंद्रित करें, जो वर्ष में औसतन 180-200 अंडे देती है और आहार उपभोग एवं भारत के संदर्भ में उनका FCR. औसत अत्यन्त परिष्कृत है। केंद्रीय कुक्कुट विकास संगठनों को एक दिन के चूजों के रूप में उत्कृष्ट जनन द्रव्य पैदा करने और निर्भीक, हितकारी, वनराजा, श्यामा कारी, चाबरों आदि प्रजातियों के अंडों को सेने की व्यवस्था करने का दायित्व सौंपा गया है। ये संगठन आहार नमूनों के विश्लेषण में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

उपरोक्त गतिविधियों के अतिरिक्त ये संस्थान अन्य पक्षी प्रजातियों (जैसे- बतख/टकी/मुर्गी/जापानी बटेर) के विविधीकरण की योजना बनाने, प्रशिक्षण इकाई को अंतर्राष्ट्रीय शीतोष्ण पक्षी प्रबंधन संस्थान के रूप में उन्नत करने के उपाय भी कर रहे हैं. जिसमें सार्वजनिक निजी भागीदारी का प्रावधान है। फिलहाल ये संस्थान केन्द्र प्रायोजित योजना 'राज्य कुक्कुट फार्मों को सहायता का संचालन और उन्हें प्रोत्साहित करने जैसे कार्यों में भी लगे हुए हैं।

poultry farming 
poultry farming 

राज्य कुक्कुट पालन फार्म को सहायता प्रदान करने के लिए एक नई केन्द्रीय योजना दसवीं पंचवर्षीय योजना से कार्यान्वित

की जा रही है जिसमें मुर्गियों की देखरेख, अंडों और अंडों को सेने तथा उनकी बीमारियों की पहचान से सम्बन्धित सुविधाओं को समुचित रूप से उपलब्ध कराने हेतु एकमुश्त सहायता दी जाती है।

वर्ष 2004-05 के दौरान 'डेयरी पोल्ट्री उद्यम पूंजी कोप' (Dairy/Poultry Venture Capital Fund) नाम की एक योजना शुरू की गई, जिसमें ब्याज की अदायगी पर सब्सिडी देने का प्रावधान है। इस योजना को लागू करने में नाबार्ड राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों की सहायता से नोडल ऐजेन्सी की भूमिका अदा करता है। वर्ष 2005-06 में 2.17 करोड़ रुपये की लागत वाली कुल 49 मुर्गीपालन इकाइयां स्वीकृत की गई हैं।

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